“तुम से मिलकर न जाने क्यों “…जैसे ढेर सारे कालजयी गीत देने वाले गीतकार एस एच बिहारी की स्मृतियों को सलाम!

ताज़ा खबर मनोरञ्जन समाज

मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे !

ध्रुव गुप्त

ध्रुव गुप्त

पुरानी फिल्म ‘शर्त’ का एक गीत ‘न ये चांद होगा न तारे रहेंगे’ अपनी मासूमियत की वज़ह से मेरे सबसे प्रिय गीतों में एक रहा है। कल एक बार फिर इसे सुनते हुए संगीतकार-गायक हेमंत दा के साथ गीतकार शमशुल हुदा बिहारी की याद आई। हिंदी सिनेमा को ढेर सारे कालजयी गीत देने वाले इस गीतकार के सैकड़ों गीत लोगों की ज़ुबान पर हैं, लेकिन खुद उसका नाम लोगों की स्मृतियों से ओझल है। पिछली सदी के संगीतमय छठे दशक का यह गीतकार फिल्मों में एस.एच बिहारी के नाम से जाना जाता है।

बिहार के शहर आरा में जन्मे और मधुपुर में जा बसे बिहारी ने दर्ज़नों फिल्मों में ऐसे कितने ही अमर गीत लिखे जिनकी चर्चा के बगैर हिंदी फ़िल्मी गीतों का इतिहास लिखना नामुमकिन होगा।

उनमें से कुछ गीत याद करिए –  न ये चांद होगा न तारे रहेंगे, देखो वो चांद छुपकर करता है क्या इशारे, नई मंज़िल नई राहें नया है मेहरबां अपना, आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहें देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा, बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी मेरी ज़िंदगी में हुज़ूर आप आए, दीवाना हुआ बादल सावन की घटा छाई, इशारों इशारों में दिल लेने वाले बता ये हुनर तूने सीखा कहां से, ये दुनिया उसी की ज़माना उसी का, तारीफ़ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया, बदल जाए अगर माली चमन होता नहीं खाली, यही वो जगह है यही वो फ़िज़ाएं जहां पर कभी आप हमसे मिले थे, मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको ज़ुदा अपनी बांहों से होने न देगा, मैं शायद तुम्हारे लिए अज़नबी हूं, फिर मिलेंगे कभी इस बात का वादा कर लो, ज़रा हौले हौले चलो मेरे साजना, मेरी जान तुमपे सदके एहसान इतना कर दो, जुल्फों को हटा लो चेहरे से थोड़ा सा उजाला होने दो, रातों को चोरी-चोरी बोले मेरा कंगना, न जाने क्यों हमारे दिल को तूने दिल नहीं समझा, कजरा मुहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला, लाखों है यहां दिलवाले पर प्यार नहीं मिलता, चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया, तुमसे मिलकर ना जाने क्यों और भी कुछ याद आता है, वो हंसके मिले हमसे हम प्यार समझ बैठे और फिर ठेस लगी दिल को दिल दर्द से भर आया।

गीतकार के रूप में संगीतकार अनिल विश्वास ने उन्हें पहला अवसर दिया था सन 1949 की फिल्म ‘लाडली’ में, लेकिन उन्हें लोकप्रियता मिली 1953 में हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में बनी एस मुखर्जी की फिल्म  ‘शर्त’ से। वे संगीतकार ओ.पी नैयर के सबसे पसंदीदा गीतकार थे। ओ.पी नैयर के साथ उनकी जोड़ी ने दर्जनों फिल्मों में धमाल मचाया था। गीतकार के रूप में उनकी आखिरी फिल्म थी संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ 1985 की ‘प्यार झुकता नहीं’।

हिंदी सिनेमा में अमूल्य योगदान के बावज़ूद उस दौर के कई दूसरे गीतकारों के जैसी ख्याति उन्हें नहीं मिली। गीत लिखने के अलावा बिहारी ने बहुचर्चित फिल्म ‘दो बदन’ का निर्माण भी किया था और ‘प्यार झुकता नहीं’ की कथा-पटकथा भी लिखी थी। मरहूम एस. एच. बिहारी की संगीतमय स्मृतियों को सलाम !

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं,फिलवक्त स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं)

सग़ीर ए ख़ाकसार

Loading