रक्षाबंधन विशेष-भाई बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन पर्व

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पवन यादव


रक्षाबन्धन का पर्व श्रावण मास में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा अपना सम्पूर्ण रूप ले लेता है । यह पर्व भाई बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक है । बहन पूजा विधि के जरिये जब अपने भाई के हाथो में कलाई बाँधती है तो आश्वस्त हो जाती है की उसकी हर तरह से भाई रक्षा करेगा ।

यह स्नेह का ऐसा सम्बन्ध है जिसमे बहन भी भाई के लिए मंगल की कामना करती है और रक्षाबन्धन का धागा रिश्तो को मजबूत कर देती है ।


भारत में पवित्र धागों के पर्व रक्षाबन्धन का बड़ा महत्व है । भाई- बहन के रिश्तो को लेकर रक्षाबंधन पर्व लोगो में प्रचालित हो गया है । लेकिन इस परम्परा की शुरुआत भाई बहन से न होकर आसुरी वृत्तियों से मुक्त होने के प्रयास को लेकर मानी जाती है । पुराणों में कहा गया है की असुरो और देवताओ के युद्ध में इन्द्राणी ने इंद्र को रक्षाबन्धन बांधा था ।

इसी तरह कई आख्यान धार्मिक पुराने ग्रंथो में उल्लेख है । परन्तु आज के समय में यह भाई बहन का पर्व है । एक दूसरे की खुशियो को चाहते हुए यह पर्व पुरे हर्षोल्लाष और परम्परागत तरीके से मनाया जाता है ।


मनुष्य को विकारो ,आसुरी संस्कारो व्यभिचारो से मुक्त होने के लिए पवित्रता के लिए बल की आवश्यकता होती है । जब मनुष्य पवित्रता की राह को छोड़ कर चल पड़ता है । तब उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । तब पूजा विधान के साथ ऐसी ही डोर पहनी जाती है । यह डोर उनके प्रति ऐसा विश्वास योग्य होता है जो उनकी रक्षा करती है ।

पूर्व में इसी तरह युद्ध के लिए जाते हुए ऐसा ही डोर इसी विश्वास के साथ बाधी जाती थी की उसका सुरक्षा बनी रहेगी । पूर्ब में ब्राम्हण भी पीला पतला धागा अपने यजमानो को को बाँधते थे जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता था । यह प्रथा आज भी प्रचलित है ।


प्राचीन समय से परम्परा रही है की घर या मंदिर में कोई अनुष्ठान के समय ब्राम्हण या पुजारी हाथ में रक्षा सूत्र बाँधते है और आध्यत्मिक शक्तिओ से रक्षा की कामना करते है । बाद में यही परम्परा भाई बहनो के स्नेह बंधन के रूप में स्वीकार की गयी । बहने अपने भाई के कलाई पर राखी बाँधने लगी । यह माना गया है की जिस भावना व् विस्वास से बहन ने भाई के कलाई में पवित्र धागा बाधा है उसी तरह उसी भवन अनुरूप भाई को विस्वाश का बल मिलता है । उसके जीवन में खुशिया बनी रहेगी । नकरात्मक चीजे उस पर हाबी नही होगी । इसी धागे में इतनी ताकत होगी जो अपने बहन की रक्षा के लिए प्रेरित करती रहेगी ।

रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ ही होता है की रक्षा के लिए बंधन । हालाकि की बंधन किसी को भी प्रिये नही होता है लेकिन राखी का यह बंधन भाई को ओजस्वी बनाता है । उसमे यह दायित्व बोध से कहता की उसे अपनी बहन का ख्याल रखना है ।इस बन्धन में बधते हुए ख़ुशी ख़ुशी बहन के हाथो अपनी कलाई पर राखी बंधवाता है और ऐसी मर्यादा का बंधन है की जिसमे भाई बहन का स्नेह समाया हुआ है ।

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