—-“ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना” -मुकेश जी की पुण्यतिथि पर विशेष!

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अमेरिका डेट्रॉइट शहर में आज ही के दिन 1976 में (27 अगस्त) मिशीगन में दिल का दौरा पड़ने के बाद सांसो ने साथ छोड़ दिया और वो दुनिया ए मौसीक़ी और जहान ए आह ओ सोज़ में एक ऐसी खला रिक्तता भर गए जो फिर कभी पूरी नही हो सकेगी

“जब सजी दर्द,सोग की महफ़िल
तेरे नग़मों का , ज़िक्र तब आया”

डॉ खुर्शीद अहमद अंसारी

के एल सहगल ने अपने ज़हन पर ज़ोर देते हुए कहा था”मैं याद नही कर पा रहा हूँ, कि यह गाना मैंने कब और किस फ़िल्म में गाया था” यह कहानी है उस गाने की जिसके अल्फ़ाज़ कुछ इस तरह थे” दिल जलता है तो जलने दे आंसू न बहा फरियाद न कर ” जिसे मुकेश चंद माथुर जिन्हें मुकेश के नाम से ख्याति मिली उन्होंने गाया था।

दिल्ली में जन्मे मुकेश एक अमीर कायस्थ परिवार की छठवीं संतान थे। उनके बहन को संगीत की शिक्षा देने आने वाले गुरु के ज्ञान से मुकेश चोरी छुपे दूसरे कमरे में सीखते और गुनगुनाते और इसी शौक़ ने उनको 10 वीं तक पढ़ने के बाद सार्वजनिक विभाग में काम करने और गाने के शौक में मुब्तला कर डाला।

उनके रिश्तेदार मोती लाल ने उन्हें किसी शादी में गाते हुए सुना तो उन्हें बम्बई बुलवा भेजा और वहां से एक एक्टर जो सपना था मुकेश का, अब हिंदुस्तानी सिनेमा में एक ऐसी आवाज़ बनने जा रहा था जिसको करोङो सिनेमा प्रेमियों ने दर्द के चाशनी में डूबी हुई रूह की गहराई तक उतरने वाली आवाज़ के नाम से मशहूर कर दिया। एक जमाना यूँ आया कि दर्द भरे नग़मों के पर्याय मुकेश ही बने रहे। शुरू में दिलीप साहब, मनोजकुमार, और राज कपूर साहब की आवाज़ और उनके किरदार के अक्स के तौर पर दशकों तक मुकेश को देखा सुना गया।


अमेरिका डेट्रॉइट शहर में आज ही के दिन 1976 में (27 अगस्त) मिशीगन में दिल का दौरा पड़ने के बाद सांसो ने साथ छोड़ दिया और वो दुनिया ए मौसीक़ी और जहान ए आह ओ सोज़ में एक ऐसी खला रिक्तता भर गए जो फिर कभी पूरी नही हो सकेगी और उनके प्रशंसक यह पुकारते रहेंगे


“ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना”
“कल खेल में हम हो न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
भूलो गे तुम, भूलेंगे हम पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा…
जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहाँ”
कई राष्ट्रीय फ़िल्म पुरुस्कार और फ़िल्मफ़ेयर सम्मान प्राप्त करने वाले टूटे दिलों की तर्जुमान आवाज़ के जादूगर ट्रेजेडी किंग और वॉइस ऑफ मिलेनियम मुकेश चंद्र माथुर को उनकी बरसी पर श्रद्धांजलि!!!!

(लेखक जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

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