दीवाली पर कहाँ होती है कुत्तों की पूजा?और कहाँ होता है “कुत्तों के मीट वाला उत्सव?कहाँ स्थित है कुकुर देव मंदिर?

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सग़ीर ए ख़ाकसार /इण्डो नेपाल पोस्ट

                           कहते हैं इंसान से ज़्यादा वफादार कुत्ते होते हैं।वो अपने स्वामी के प्रति बेहद ईमानदार होते हैं।कुत्तों और इंसानों के बीच वफ़ादारी को दर्शाने वाली फिल्मों की अपने यहाँ तो भरमार रही है।कुत्तों की वफादारी पर तो आप ने वॉलीवुड की कई फ़िल्में देखी होंगी। “तेरी मेहरबानियां “फिल्म को शायद आप भूले नहीं होंगे।लेकिन आज हम आपको ले चलते हैं नेपाल।जहाँ कुत्तों की होती है बाकायदा पूजा।नेपाल में दीपावली का पर्व यूँ तो पांच दिनों का होता है ,लेकिन इसमें एक दिन समर्पित है कुत्तो की पूजा हेतु ,जिसे कहा जाता है कुकुर तिहार।  

                   नेपाल में हिन्दू मान्यता के अनुसार कुत्तों को भैरव का दूत माना जाता है। इस लिए लोग इस खास दिन पर कुत्तो  की पूजा करते हैं।यह इंसानों के जानवरों के प्रति प्रेम को भी दर्शाता है। इस दिन लोग अपने घरों में कुत्ते की पूजा करते हैं।इसके अलावा जो ट्रैंड कुत्ते होते हैं।वो करतब भी दिखाते हैं।इस दिन बाकायदा कुत्तों के सिर पर लाल रोली भी लगाई जाती है।टीका और फूलों का माला भी पहनाया जाता है। स्पेशल व्यंजन बनाया जाता है।दही के सेवन के साथ साथ दूध व अंडे भी खाने के लिए दिए जाते हैं।
जगह जगह पर आयोजन भी होते है ।काठमांडू का सेन्ट्रल पुलिस डॉग ट्रेनिग सेंटर हर साल इस त्यौहार के मौके पर पूजा के आयोजन के साथ अपने प्रशिक्षित कुत्तों दुआरा तरह तरह के करतब भी दिखाता है। नेपाल में कुकुर तिहार को लेकर काफी उत्साह और जोश भी देखने को मिलता है। सभ्य समाज में इंसानों और जानवरों के बीच सह अस्तित्व का भाव जगाने वाला नेपाल का कुकुर पूजा कई मायनों में देखा जाये तो बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।ऐसे समय में जब चीन में प्रतिवर्ष “कुत्तों के मीट वाला उत्सव” बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है। बताया जाता है कि महज़ दस दिनों तक चलने वाले उस उत्सव में दस से पंद्रह हज़ार कुत्तों को मार दिया जाता है।चीन में मनाए जाने वाले इस उत्सव का इतिहास करीब पांच सौ साल पुराना है। वहां हज़ारों मील से कुत्तों को भूखों और प्यासा रख कर लाया जाता है। रास्ते में उन्हें  कुछ खिलाया और पिलाया भी नहीं जाता है।यही नहीं इस उत्सव का विरोध करने वाले सामाजिक संगठनों का आरोप तो यहाँ तक है कि कुत्तों को तब तक पीटा जाता है जब तक उनकी मौत न हो जाये।एक्टिविस्ट इस उत्सव को पूरी तरह अमानवीय करार देते हैं।       एक सर्वे के मुताबिक चीन के ही 64 फीसद लोग कुत्तों के मीट वाले इस उत्सव के खिलाफ हैं।बावजूद इसके यह उत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ वहां मनाया जाता है।

क्षत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खपरी गांव में स्थित कुकरदेव मंदिर

जहां तक अपने देश का सवाल है ,खाद सुरक्षा और मानक कानून 2011 के मुताबिक अपने देश में कुत्ते,बिल्ली व् अन्य जानवरों को मारने का अधिकार नहीं है।इसके बावजूद पूर्वोत्तर के राज्यो नागालैंड और मिजोरम  से कुत्तों के मांस के अवैध ब्यापार की ख़बरें आती रहती हैं।ह्यूमन सोसाइटी इंटरनेशनल के आंकड़ों  पर अगर भरोसा करें तो सिर्फ कोहिमा और दीमापुर में करीब 15000 कुत्तों के बेचे जाने का अनुमान है।पूर्वोत्तर में हालात जैसे भी हों लेकिन अपने ही देश में छतीसगढ़ के राजनंदा गाँव में कुत्ते का एक विशेष मंदिर है।जहाँ बाकायदा कुत्ते की प्रतिमा भी स्थापित है और उसकी पूजा भी की जाती है।बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना फणी नागवंशी शासकों दुआरा 14वी 15वीं शताब्दी में की गयी थी।इसे कुकुरदेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।।       नेपाल में पांच दिनों तक मनाये जाने वाले तिहार(पर्व) पर कुत्तों को पूजने के अलावा कई अन्य जानवरों के पूजा अर्चना की भी परंपरा है।लाइफ विद डॉग्स के मुताबिक कुत्तों को पूजने के साथ साथ उन्हें कई तरह की स्वादिष्ट मिठाइयां भी परोसी जाती हैं।पहले दिन यमराज के दूत के रूप में माने जाने वाले कौवे की पूजा ,दूसरे दिन भगवान भैरव के रूप में कुत्ते की पूजा तीसरे दिन देवी लक्ष्मी के रूप में गाय की पूजा चौथे दिन शक्ति के देवता बैल की पूजा तो पांचवें और आखरी दिन बहने भाइयो  के सम्मान में मनाती हैं जिसे भइलो व् देउसे के रूप में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।इतने सारे तिहार को मनाने के अगर आप शौक़ीन हैं तो आप को एक बार नेपाल अवश्य ही जाना चाहिए।

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