यात्रा संस्मरण:तालीमी बेदारी का पश्चिमी यूपी का दौरा और ग्लोकल यूनिवर्सिटी,सहरानपुर में नेशनल सेमिनार

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सग़ीर ए ख़ाकसार


तालीमी बेदारी का कारवां लखनऊ के गोमती नगर स्थित केंद्रीय कार्यालय से 16 दिसम्बर 2018 ,रविवार को अध्यक्ष डॉ वसीम अख्तर की क़यादत में शुरू होता है।मैं और मेरे एक और नौजवान साथी भाई निहाल अहमद एक दिन पहले शनिवार की रात ही लखनऊ पहुंच जाते हैं।मकसद तालीमी बेदारी के नेशनल सेमिनार की तैयारी और उसमें शामिल होने की भी है।सेमिनार का आयोजन 18 दिसम्बर को ग्लोकल यूनिवर्सिटी सहारनपुर में किया गया था।


लखनऊ से सड़क के रास्ते निजी वाहन से दोपहर में सफर की शुरुआत होती है।हमारे इस यादगार सफर में ड्राइवर विनोद जो कि खुद तालीमी बेदारी का एक हिस्सा हैं सारथी की भूमिका निभाते हैं। पहला विश्राम सीतापुर के मैंगलगंज स्थित अशोक यादव जी के ढाबे पर होता है जो कि गुलाब जामुन के रसगुल्ले के लिए मशहूर है।यादव जी यहां उपहार में कुछ गन्ने भी गाड़ी में रखवा देते हैं।गुलाब जामुन वाकई लाजवाब है यादव जी ने रसगुल्ले की मिठास में मोहब्बत की चाशनी घोल दी है।यहां से हमारी यात्रा फिर शुरू होती है।मुज़फ्फरनगर रात्रि विश्राम से पहले मुरादाबाद में दिगंबर जैन मंदिर के निकट स्थित एक ढाबे में रात का खाना खाते हैं।हल्की हल्की ठंड है मद्धम मद्धम हवाएं चल रही हैं।आसमान साफ है।हम सब यहां खाना खाने के बाद देर रात मुज़फ्फरनगर के होटल रेडिएंट इंन पहुंचते हैं।शरीर निढाल होचुका होता है बिस्तर पर पड़ते ही नींद अपने आगोश में ले लेती है।सुबह मुज़फ्फरनगर नगर जिसे मोहब्बत नगर कहना ज़्यादा मुनासिब होगा के जिंदादिल दोस्तों के आमद का सिलसिला शुरू होता है।सुबह करीब नौ बजे होटल के कमरे की डोरबेल बजती है दरवाजा खोलते ही यहां मुलाकात होती है एक हँसमुख और खुशमिज़ाज नौजवान मो0 शावेज़ से,जो कि हाथों में फूलों का गुलदस्ता लिए हम सबका इस्तेक़बाल करते हैं।भाई शावेज़ तालीमी बेदारी की कोशिशों और मंसूबों से इत्तेफाक रखते हैं और खुद यूनिसेफ से जुड़े है साथ में उनके भाई रिफाकत भी हैं।


कुछ देर बाद पत्रकार गुलफाम,भाई तहसीन,पैग़ाम ए इंसानियत के रूहें रवां भाई आसिफ रही अपने लाव लश्कर के साथ मिलने आजाते हैं।तालीमी,इंसानियत,भाई चारा जैसे मैजू पर डॉ वसीम अख्तर ,निहाल अहमद,और मौजूद दीगर लोगों से बात चीत होती है।सुबह यहां की बहुत दिलकश है ,और जिंदादिल लोगों की मौजूदगी माहौल को खुशनुमा बनाती है।यहां से हम रवाना होते है सहारनपुर के ग्लोकल यूनिवर्सिटी के लिए जहां 18 दिसंबर को “तरक्की में तालीम की अहमियत”पर नेशनल सेमिनार का आयोजन होना है।सेमिनार के कन्वेनर और टीबी सहारनपुर के जिला अध्यक्ष भाई शहज़ाद अली से सफर के दौरान गुफ़्तुगू होती रहती है।17 दिसंबर की शाम करीब पांच बजे हम सब करीब 700 किमी की यात्रा के बाद ग्लोबल के लॉ कॉलेज के हेड डॉ अयाज़ अहमद साहिब के चेम्बर में होते हैं।मामूली बात चीत और दुआ सलाम के बाद भाई शहज़ाद साहिब रात अपने घर रुकने की पेशकश कर वापस सहारनपुर के लिए लेकर लौटने लगते हैं।यूनिवर्सिटी के पास ही वो शानदार पेड़ा खिलाते है और कड़क चाय जो दिन भर के थकान को पल भर में छू मंतर कर देती है।भाई शहज़ाद का गांव ज़िला मुख्यालय से करीब सात किमी दूर है।यहां उनके वालिद साहिब और उनके दोनों भाइयों से मुलाकात होती है।भाई शहज़ाद अली के परिवार का हर फर्द यहां मेहमाननवाज़ी में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दिखते है।उनके वालिद मोहतरम ने बताया कि यहां हमारे गांव मल्हीपुर में मुगल भी किसी दौर में आये थे।भाई शहज़ाद के आवास पर रात्रि का भोजन में शानदार बिरयानी,पनीर की सब्ज़ी,रोटी और अन्य कई पकवान शामिल हैं।भरपेट भोजन के बाद हम सब तान कर सो जाते हैं।रात में ठंढक ज्यादा है इस लिए मैंने दो कंबल साट लिए हैं सुबह दोस्तों ने बताया कि मेरे खर्राटे से कुछ लोगों को सोने में तकलीफ हुई।


18 दिसंबर की सुबह कोहरे की चादर लपेटे हुए है।फ़ेसबुक पर लाइव आता हूँ सुबह ही सबको सेमिनार में दावत देने के लिए।वीडियो देखकर लगता है जैसे लद्दाख से मैं रिपोर्टिंग कर रहा हूँ।सुबह का नाश्ता भाई शहज़ाद अली के घर पर हम लोग किसी शहज़ादे की तरह करते हैं जो कि काफी” रिच” है।घर में तैयार किया हुआ मक्खन,पराठे और ऑमलेट! माय गॉड !डाइटिंग की ऐसी तैसी,टूट पड़ता हूँ, यह सोंच कर की हेल्दी डाइट न जाने कब और कहां मिले?पश्चिमी यूपी के अपने इस सफर में खान पान काफी हेल्दी दिखा और जो भी खाने को मिला,वो लज़ीज़ के साथ साथ शुद्ध भी था।


खैर ,सेमिनार 18 दिसंबर को ग्लोकल यूनिवर्सिटी में शुरू होता है और शानदार आयोजन में बदल जाता है।वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी,फादर वेसली जॉन,बौद्ध धर्मगुरु डॉ करूणा शील राहुल,वीसी सर,नारीवादी लेखिका शीबा असलम फहमी,भूपेंद्र सिंह,जैसी शख्सियतें सेमिनार में चार चांद लगा देती है।
प्रोग्राम करीब तीन बजे खत्म होता है।यहाँ अपने जिले के बच्चों से मुलाकात होती है जो इस यूनिवर्सिटी के फिलवक्त छात्र हैं।


यहां से हमारा काफिला रवाना होता है रुड़की के लिए रास्ते मे हम सब हाज़िरी देते हैं हज़रत सैयद मखदूम अलाउद्दीन साबिर पाक रहमतुल्लाह दरगाह कलियर शरीफ में।दरूद व फातिहा के बाद हम पहुंचते हैं रुड़की ।जहां भाई इमरान निगम के पुल पर पहले से ही खड़े हम सभों का इंतेज़ार कर रहे हैं।भाई इमरान हम सबको लेकर पहुंचते हैं शाहिदा शेख अप्पी के घर ,जो कि तालीमी बेदारी की अहम कारकुन है आप के शौहर सेना में कर्नल थे।दहलीज़ पर कदम रखते ही वो हम सबको गले लगा लेती हैं।ऐसे जैसे मानो कोई बच्चा बाहर से खेल कर आया हो और मां उसे अपने बाहों में भर ले,या कोई बच्चा बरसों बाद अपनी मां से मिला हो और उसके सीने से लिपट जाए।

यहां पहले से ही दर्जनों बुद्धिजीवी व समाजी कारकुन मौजूद हैं।यहां मुलाकात होती है एक ऐसे अज़ीम शख्सियत से जिससे मिलना किसी के लिए भी बड़े सौभाग्य की बात होगी।आप हैं रिटायर्ड कर्नल वाई के चौधरी साहिब जिनके परिवार का हर फर्द अपना शरीर दान कर चुका है।वो स्वयं 105 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं।विकलांग बच्चों को आप ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है।मूक बघिर स्कूल की स्थापना भी की है।यहां मुलाकात होती है अजय दिगम्बर जैन ,अंजुम गौर,रेणु कश्यप,दिनेश गौतम,ओम प्रकाश नूर,नीरज नैथानी,पंकज त्यागी,अनुज यादव जैसी शख्सियतों से जिसमे ज्यादातर लोग कवि हैं या फिर कवि जैसा ह्रदय रखते हैं समाज की बेहतरी के लिए काम करते हैं।यहां रुड़की में शाहिदा अप्पी ने वेज नॉनवेज दोनों तरह के पकवान बना रखे हैं।वो बताती हैं कि सेना में पति की नौकरी के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में गईं और तरह तरह के बयनजनों को न सिर्फ चखा बल्कि बनाना भी सीखा।शाहिदा अप्पी जिस तरह से प्यार हम सब पर लुटा रही थीं उससे देखकर मैक्सिम गार्ककी के विश्वविख्यात पुस्तक “मां” की याद आजाती है।


रुड़की से भोजन के बाद हम सब मेरठ के लिए रवाना हो गए।अगली सुबह लखनऊ लौटते वक्त रामपुर में डॉ फ़िरोज़,फैजान अहमद और जैदी साहिब से मुलाकात हुई और शजहाँपुर में अफ़रोज़ खान भाई से।इस दौरान करीब आधे दर्जन से भी ज़्यादा जिलों के भ्रमण के दौरान सैकड़ों लोगों से मुलाकात हुई और तकरीबन दो हज़ार किमी की एक यादगार सड़क यात्रा हम लोगों ने की।अगली यात्रा के लिए नया शहर और नया नक्शा ढूंढ रहा हूँ मिलते हैं जल्द ही।


मुसाफ़िर हम भी हैं मुसाफ़िर तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी।

(लेखक सग़ीर ए खाकसार स्वतंत्र पत्रकार व तालीमी बेदारी उत्तरप्रदेश के अध्यक्ष हैं)

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