येशु दास:ऐसे गायक जिनके सुर गले से नहीं,रूह से उठते हैं!

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पश्चिमी संगीत के शोर में अरसे से हिंदी सिनेमा के परिदृश्य से ओझल येशुदास के जन्मदिन (10 जनवरी) पर उनके सुरीले जीवन की शुभकामनाएं !

इतना सब कुछ हासिल करने के बावज़ूद उनकी एक तमन्ना रह गई कि वो केरल के मशहूर गुरुवायुर मन्दिर में बैठकर कृष्ण की स्तुति गाएं। मन्दिर के नियमों के अनुसार ईसाई येशुदास को कभी भी मन्दिर में प्रवेश नही मिल सका। येशुदास को उनकी बेमिसाल गायिकी के लिए 7 राष्ट्रीय और 43 अन्य पुरस्कार हासिल हैं।

ध्रुव गुप्त

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं,फिलवक्त स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं)

दक्षिण भारत से आने वाली हिंदी फिल्मों की सबसे मधुर और संज़ीदा आवाज़ येशु दास अपनी तरह के बिल्कुल अलग-से गायक रहे हैं। ऐसे गायक जिनके सुर गले से नहीं, रूह से उठते हैं।

हिंदी सिनेमा को आए न बालम का करूं सजनी, जब दीप जले आना, मधुबन खुशबू देता है, तू जो मेरे सुर में सुर मिला दे, दिल के टुकड़े-टुकड़े कर के मुस्कुरा के चल दिए, चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा, तुम्हें देखकर जग वाले पर यकीं नहीं क्योंकर होगा, ऐ मेरे उदास मन चल दोनों कहीं दूर चलें, गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा, तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है, जानेमन जानेमन तेरे दो नयन, आज से पहले आज से ज्यादा ख़ुशी आजतक नहीं मिली, चांद अकेला जाए सखी री, कोई गाता मैं सो जाता, कहां से आए बदरा, माना हो तुम बेहद हसीं, काली घोड़ी द्वार खड़ी, सुरमई आंखों में नन्हा मुन्ना एक सपना दे जा रे जैसे सैकड़ों बेहतरीन गीत देने वाले काट्टश्शेरि जोसफ़ येशुदास अपनी आवाज़ की शास्त्रीयता और दिल में उतर जाने वाली सादगी के लिए जाने जाते हैं।

संगीतकार सलिल चौधरी के साथ फ़िल्म ‘आनंद महल’ के गीत ‘आ आ रे मितवा’ से हिंदी सिनेमा में शुरूआत करने वाले येशुदास देश के पहले गायक हैं जिन्होंने हिंदी, संस्कृत, मलयालम, तमिल, तेलगु, कन्नड़, गुजराती, मराठी, उड़िया, पंजाबी, अंग्रेजी, लैटिन, रूसी और अरबी भाषाओं में पचपन हज़ार से ज्यादा गीत गाए हैं।

इतना सब कुछ हासिल करने के बावज़ूद उनकी एक तमन्ना रह गई कि वो केरल के मशहूर गुरुवायुर मन्दिर में बैठकर कृष्ण की स्तुति गाएं। मन्दिर के नियमों के अनुसार ईसाई येशुदास को कभी भी मन्दिर में प्रवेश नही मिल सका। येशुदास को उनकी बेमिसाल गायिकी के लिए 7 राष्ट्रीय और 43 अन्य पुरस्कार हासिल हैं।

सग़ीर ए खाकसार

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