देश के निर्माण में भाषा / हिंदी का योगदान

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अनिल शर्मा

अनिल शर्मा

भाषा –शब्दों को जोड़कर हम एक माध्यम बनाते हैं अपनी बात कहने का ,जिसे हम भाषा कहते हैं । भाषा ,बोल कर ,लिख कर व हाव-भाव से समझी / समझायी जा सकती है

भाषा व विकास-विकास की बात समझने व करने के लिए हमे सबसे पहले भाषा को समझना होगा ।जन्म  के समय बच्चा सामान्यत: रोता है उसके रोने की वह भाषा माँ को समझ आती है माँ समझती है कि ये रोना भूख की वजह से है या बिस्तर के गीले होने से है या कोई और कारण है । यह भाषा मॉं को सम्प्रेषित होती है।तो यह बात तय है कि भाषा के संप्रेषणीय होने की स्थिति में ही आगे  कोई बात हो सकती है।

भाषा के संप्रेषण के माध्यम-व्यक्ति जिस भाषा को समझता है उस भाषा को ही मुख्य मानकर चलता है किसी अन्य भाषा को वह द्वितीय प्राथमिकता प्रदान करना चाहता है या कभी कभी कोई प्राथमिकता नहीं देता है ।आदिवासी / जनजाति अपनी भाषा के अलावा किसी भी भाषा को नहीं समझती थी लेकिन उनके उत्थान की बात चली ,उनके जीवन यापन को बेहतर बनाने की बात की गई ,उनकी चिकित्सा,शिक्षा के प्रयास किए गए तो उस जनजाति ने अपनी भाषा के अलावा और किसी संप्रेषणीय भाषा को सीखने समझने का प्रयास किया क्योंकि वह उनके विकास के लिए अहम थी,और उन्होंने उस भाषा को सीख कर स्वयं के विकास में तो योगदान किया ही अन्य जनजातियों  को भी प्रेरित किया ।देश के विकास की बात समझी ,उन सभी ने  समझा कि  संप्रेषणीय भाषा ही हमारा,हमारे गाँव का ,प्रदेश का व देश का निर्माण कर  सकती है ,हमारे विकास की धुरी हो सकती है जो पढ़ सके वह पढ़कर बोलने लगे जो नहीं पढ़ सके वह अपने हाव-भाव की भाषा से विकास के यज्ञ में आहुति देने लगे ।बोलने वाली भाषा के साथ शारीरिक हाव भाव की भाषा भी देश के निर्माण मे अहम भूमिका निभाती आयी है।

भाषा व विकास-हम देश के विकास की बात करते हैं और चाहते भी है कि हम विकसित राष्ट्र बने ,हम अपनी व अन्य भाषाओं के माध्यम से विकास  की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं ।इसमें कोई श़क नहीं हमारे विकास की गति प्रशंसनीय है ।हमने देखा है कि भाषा ने किसी भी निर्माण में अहम भूमिका निभाई है इस विकास के यज्ञ में ।जब हम आंकलन करते हैं तो पाते हैं कि देश के विकास की जनक है भाषा ,किसी भी विकसित देश की रीढ में भाषा ही विकास की व निर्माण की जननी है ,वह देश सबसे पहले विकसित देखे गए जो अधिक भाषाएँ समझते हैं बोलते हैं ।देश की प्रगति ,देश का विकास ,आर्थिक निर्भरता आधुनिक तकनीकी व शिक्षा के आदान प्रदान ,भाषा के सम्प्रेषण के बिना सम्भव नहीं हैं ।

हमें उन लोगों के साथ मिलकर कार्य करना होता है,व्यापार करना होता है जिनकी भाषा हम से भिन्न हो सकती है अगर प्रभावित व्यक्ति भाषा के ज्ञान से विज्ञ है,दूसरी उस भाषा को भी समझता है जिसकी उसको ज़रूरत है तो तीव्रता से समाधान भी संभव है ,हमें सामंजस्य स्थापित करना होता है उन सभी के साथ जो भाषा ही कराती है ।व्यक्ति विषेश को देश हित मे उच्च-चिकित्सा,शिक्षा,तकनीकी का आदान प्रदान करने से पहले वह भाषा सीखनी होती है जिसके माध्यम से संबंधित तकनीकी को देश के निर्माण में लागू किया जाएगा ।

भाषा व राष्ट्र निर्माण-भाषा को सिर्फ़ भाषा तक सीमित करके नहीं देखा जा सकता है , भाषा की व्यापकता को समझना होगा ।राष्ट्र निर्माण की बात भी बहुत चीज़ों पर निर्भर करती है ।जैसे हम कोई भी निर्माण करने से पहले उससे संबंधित सामग्री का ज्ञान प्राप्त करते हैं फिर उस सामग्री की गुणवत्ता को जॉंचकर  क़दम बढ़ाते हैं उसी प्रकार का देश को विकसित ,समृद्ध ,शक्ति संपन्न ,राष्ट्र बनवाने में भाषा का योगदान है जैसा कि एक सुयोग्य कारीगर का हो सकता है कि किस अनुपात के मिश्रण का कैसे और कहाँ उपयोग किया जाये ।भाषा नागरिकों को संयुक्त रूप से बाँध कर रखने का महान कार्य करती है ।नागरिक भाषा के माध्यम से ही अपनी योग्यता का उपयोग एक-दूसरे के हित में कर सकते हैं ।भाषा के माध्यम से सामंजस्य स्थापित करके देश के निर्माण  में सफल हो सकते हैं ।हमें अपने सहकर्मी सहयोगी पड़ोसी गाँव ,क़स्बों  व शहरों में अपनी भाषा से अपनी बात समझानी होती है उसी प्रकार सामने काम कर रहा व्यक्ति अपनी भाषा में कुछ कहता है तो हमें समझना होगा हमें तैयार रहना चाहिए सीखने व सिखाने के लिए वह सब जो भाषा के द्वारा सीखा जा सकता है ,फिर वह भाषा किसकी है कौन सी है कोई मतलब अगर है तो सिर्फ़

देश का निर्माण –आज दूसरे देशों के लोग भारत में आकर यहॉं की भाषा सीख रहे हैं जिसको सीखकर वह अपना उत्पाद बेच रहे है व अपना व्यापार कर रहे हैं ।दूसरे देशों के लोग अपने राष्ट्र के निर्माण हेतु हमारी भाषा सीखकर यहाँ से पैसा कमाकर अपने देश की उन्नति में लगे हैं ।भाषा की जानकारी के बाद उनका व्यापार सरल सुगम हो गया है ।इसी प्रकार हमारे देश के नागरिक दूसरी भाषायें सीखकर नई तकनीकि व अन्य माध्यमों से देश के निर्माण में सतत प्रयत्न कर रहे हैं,अभिप्राय यह है कि भाषाएँ संप्रेषण में सरलता लाकर कार्य को सफल बना सकती हैं अगर हम अपने ग्राहक की भाषा में बात कर सकें तो अपने राष्ट्र के लिए हर मोर्चे पर कार्य कर सकते हैं राष्ट्र के निर्माण में महान योगदान दे सकते हैं वह राष्ट्र सफल हैं जो सभी भाषाओं का सम्मान करके अपने निर्माण में आने वाली रुकावटों को हटाते हुए आगे बढ़ते ही जा रहे हैं भारत उस श्रेणी की अग्रिम पंक्ति में है।

बहुराष्ट्रीय का मतलब भी बहुराष्ट्रीय भाषाओं के ज्ञान व विज्ञान से है।इसके बिना राष्ट्र निर्माण या कहें कि भाषा / भाषाओं के ज्ञान के बिना राष्ट्र की प्रगति की बात करना राष्ट्र निर्माण हेतु क़दम बढ़ाना अधूरा प्रयास होगा। भाषा राष्ट्र निर्माण की रीढ़ है /जननी है ।

कवि-अनिल कुमार शर्मा,

5-पाटलिपुत्र दयालबाग

आगरा-भारत

ईमेल-omanilsharma@gmail.com

सग़ीर ए खाकसार

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