…….जो हमने दास्तां अपनी सुनाई !रूमानी नग़मों के शायर राजा मेंहदी अली खान!

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राजा साहब के लिखे कुछ कालजयी गीत हैं – मेरी याद में तुम न आंसू बहाना, मेरा सुन्दर सपना बीत गया, बदनाम ना हो जाए मुहब्बत का फ़साना, मैं प्यार का राही हूं, आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे, जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम, मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊं कैसे, है इसी में प्यार की आबरू, जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया, जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए, लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो,

ध्रुव गुप्त

अपने हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसे कई फ़नकार हुए हैं जो सिनेमा में कम योगदान देने के बावज़ूद अपने पीछे बड़ी-बड़ी यादें छोड़ गए। मरहूम राजा मेहंदी अली खान सिने संगीत के सुनहरे दौर के ऐसे ही एक गीतकार थे। उन्हें गीत लिखने के मौक़े कम मिले, लेकिन उनके गीतों के उल्लेख के बगैर हिंदी के फिल्म संगीत का इतिहास लिखा जाना भी मुमकिन नहीं। पाकिस्तान के झेलम में 1928 में जन्मे और पले इस शायर ने देश के विभाजन के बाद भारत में ही बसना और जीना-मरना स्वीकार किया।

उन्हें सबसे पहले फिल्मकार एस. मुखर्जी ने अपनी फिल्म ‘दो भाई’ में गीत लिखने का मौका दिया। इस फिल्म का गीत ‘मेरा सुन्दर सपना बीत गया’ बहुत मकबूल हुआ। दिलीप कुमार अभिनीत ‘शहीद’ के उनके गीत ‘वतन की राह पे वतन के नौज़वां शहीद हो’ ने बड़े गीतकारों के उस दौर में भी राजा साहब को हिंदी सिनेमा में स्थापित कर दिया। 1950 की फिल्म ‘मदहोश’ में संगीतकार मदन मोहन के साथ उनकी अद्भुत जोड़ी बनी जिसने हिंदी सिनेमा को कई अनमोल संगीतमय फ़िल्में दीं हैं। जिन फिल्मों में राजा साहब ने गीत लिखे, उनमें प्रमुख हैं – दो भाई, शहीद, पापी, आंखें, मदहोश, अनपढ़, मेरा साया, रेशमी रूमाल, कल्पना, भाई बहन, वो कौन थी, नीला आकाश, दुल्हन एक रात की, एक मुसाफिर एक हसीना, अनीता, आपकी परछाईयां, जब याद किसी की आती है और जाल।

राजा साहब के लिखे कुछ कालजयी गीत हैं – मेरी याद में तुम न आंसू बहाना, मेरा सुन्दर सपना बीत गया, बदनाम ना हो जाए मुहब्बत का फ़साना, मैं प्यार का राही हूं, आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे, जीत ही लेंगे बाज़ी हम तुम, मैं निगाहें तेरे चेहरे से हटाऊं कैसे, है इसी में प्यार की आबरू, जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया, जो हमने दास्तां अपनी सुनाई आप क्यों रोए, लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो, नैना बरसे रिम झिम रिमझिम, तू जहां जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा, नैनों में बदरा छाए, आपके पहलू में आकर रो दिए, झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में, तुम बिन जीवन कैसे बीता पूछो मेरे दिल से, एक हसीं शाम को दिल मेरा खो गया, अगर मुझसे मुहब्बत है मुझे सब अपने गम दे दो, आपकी नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे, वो देखो जला घर किसी का, सपनों में अगर मेरे तुम आओ, आखिरी गीत मुहब्बत का सुना लूं तो चलूं, अरी ओ शोख़ कलियों मुस्कुरा देना वो जब आए और गर्दिश में हैं तारें ना घबड़ाना प्यारे। दुर्भाग्यसे राजा साहब को फिल्मों में वह यश और उतने अवसर नहीं मिले जिनके वे वास्तव में हकदार थे।1996 में उन्होंने दुनिया को उस समय अलविदा कह दिया जब लोकप्रियता का शिखर उनसे बहुत दूर नहीं था।

(लेखक रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी हैं,फ़िलवक्त स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं)

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