सगीर ए खाक़सार
सिद्धार्थनगर,05 जनवरी।इंडो नेपाल पोस्ट।
“संकल्प, संघर्ष और समर्पण से असंभव भी संभव हो जाता है।” इस सत्य को सिद्धार्थनगर जिले के खुरहुरिया गांव निवासी मनीष चौधरी ने अपने अदम्य परिश्रम, अटूट धैर्य और अपराजेय इच्छाशक्ति से सिद्ध कर दिखाया।
कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कनिष्ठ अभियंता भर्ती परीक्षा 2024 में उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 38 प्राप्त कर जिले का नाम राष्ट्रीय पटल पर गौरवान्वित कर दिया।
इस कठिनतम परीक्षा में सिविल, इलेक्ट्रिकल एवं मैकेनिकल अभियंत्रण शाखाओं के 1701 पदों के लिए लगभग 5 लाख अभ्यर्थियों ने भाग लिया था।
मनीष ने प्रीलिम्स व मेन्स की कठिन कसौटी पर खरा उतरते हुए केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) में कनिष्ठ अभियंता पद पर चयनित होकर सिद्ध कर दिया कि सच्ची लगन और अटूट संकल्प से हर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
साधारण पृष्ठभूमि, असाधारण उपलब्धि
मनीष चौधरी के पिता श्री राम भवन कृषक हैं और माता श्रीमती जनक दुलारी एक गृहिणी। सीमित संसाधनों के बावजूद माता-पिता ने अपने पुत्र को उच्च शिक्षा और सफलता की राह पर अग्रसर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
राजकीय पॉलीटेक्निक, गोंडा से 2020 में मैकेनिकल प्रोडक्शन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा प्राप्त कर उन्होंने कठिनतम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी प्रारंभ की।
हालांकि, यह यात्रा सरल नहीं थी। 2022 और 2023 में प्रारंभिक परीक्षा (प्री) में सफलता न मिलने से वह हतोत्साहित अवश्य हुए, किंतु उन्होंने हार नहीं मानी।
लगातार दो वर्षों की असफलता के बाद भी अपने आत्मविश्वास को बनाए रखा और इस वर्ष अखिल भारतीय स्तर पर 38वां स्थान प्राप्त कर अपनी क्षमता को सिद्ध कर दिया।
गुरुजनों, मेंटर्स और परिजनों को समर्पित सफलता
मनीष चौधरी अपनी इस विजय का सम्पूर्ण श्रेय अपने मार्गदर्शकों—देवेश सर, हेमंत सर, शशि भूषण सिंह एवं निर्भय सिंह को देते हैं, जिन्होंने कठिन समय में न केवल उन्हें सही दिशा दिखाई, बल्कि हर असफलता के बाद उनका मनोबल भी बढ़ाया।
उनके मेंटर अरहम सिद्दीकी ने भी इस उपलब्धि पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा, “मनीष ने अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में अथक परिश्रम किया है। उसकी सफलता यह सिद्ध करती है कि यदि इच्छाशक्ति दृढ़ हो, तो कोई भी बाधा मार्ग को अवरुद्ध नहीं कर सकती।”
उनके चयन से परिवार और गांव में हर्षोल्लास का माहौल है। उनकी चार बहनें—खुशबू, कन्यावती, सुमन और रूमन तथा छोटा भाई रजनीश इस उपलब्धि पर गर्व से अभिभूत हैं।
गदगद माता-पिता की भावनाएँ
पिता श्री राम भवन ने भावुक होते हुए कहा, “हमारे पास देने के लिए अधिक संसाधन नहीं थे, लेकिन बेटे की मेहनत और लगन ने यह सिद्ध कर दिया कि संकल्प के आगे हर बाधा छोटी पड़ जाती है।”
माता श्रीमती जनक दुलारी ने गर्व के आंसू बहाते हुए कहा, “बेटे ने हमारी वर्षों की तपस्या को सफल कर दिया। अब हम पूरे समाज में सिर ऊँचा करके चल सकते हैं।”
संघर्षशील युवाओं के लिए प्रेरणा—परिश्रम ही विजय का एकमात्र मंत्र
मनीष की सफलता उन सभी संघर्षरत युवाओं के लिए एक ज्वलंत उदाहरण है, जो संसाधनों की कमी के बावजूद अपने लक्ष्य के प्रति अडिग हैं। उनकी यात्रा यह सिद्ध करती है कि धैर्य, अनुशासन और निरंतर परिश्रम से असंभव भी संभव किया जा सकता है।
उनकी कहानी एक उद्घोष है कि सही दिशा में किया गया श्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता और प्रत्येक असफलता केवल एक नए, सशक्त प्रयास की भूमिका होती है।