बृजलाल: बीजेपी को मिला बड़ा दलित चेहरा

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यशोदा श्रीवास्तव/वरिष्ठ पत्रकार

यूपी के सिद्धार्थ नगर जिला मुख्यालय पर हाल की एक सुबह! रेलवे स्टेशन जो अभी कुछ रोज पहले नौगढ़ नाम से सिद्धार्थ नगर हुआ है। ठीक इसके पीछे चाय की दुकान पर दस पांच की संख्या में लोग चाय की चुस्की ले रहे थे। चाय की यह दुकान जिले की छोटी बड़ी राजनीतिक,आपराधिक गतिविधियों की समीक्षा का प्रमुख केंद्र है।ऐसी गतिविधियों की जानकारी या चर्चा में रुचि लेने वाले यहां घंटे दो घंटे समय देते ही देते हैं। ऐसे लोग किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं होते। इनकी चर्चा में सभी राजनीतिक दल और जिले में उसकी गतिविधियां होती है।

इस सुबह चर्चा के केंद्र बिंदु में बृजलाल थे। पूर्व आईपीएस बृजलाल को बीजेपी ने यूपी से राज्यसभा में भेजा है। उनके राज्यसभा में जाने पर बृजलाल के अपने जिले में बीजेपी के इस खूबी पर चर्चा शुरू हो गई है कि कुछ भी हो दलितों का सम्मान करना कोई बीजेपी से सीखे।इसके साथ ही लोगों में एक कड़कदार पुलिस अफसर से लेकर राजनीतिक बृजलाल की खूबियों की भी चर्चा होती रही। कहने का मतलब बृजलाल के राज्यसभा में जाने की खुशी न केवल उनकी बिरादरी में सिद्धार्थ नगर जिले के आम-ओ-खास में है।

गांव में अपने लोगों के बीच बृजलाल

बृजलाल नेपाल सीमा से सटे इस जिले के गुजरौलिया गांव के निवासी हैं। एक किसान परिवार में पैदा होकर उन्होंने पुलिस अफसर से लेकर राजनीति के इस ओहदे तक का लबा सफर तय किया। बतौर पुलिस अफसर उनकी बहादुरी के किस्से अनेक हैं, अब राजनीति उनकी दूसरी पारी है।यूपी के डीजीपी पद से अवकाश ग्रहण करते ही उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की। जब बीजेपी ज्वाइन की तो यूपी में सपा का शासन था।बताने की जरूरत नहीं कि पुलिस अफसर रहते हुए मुलायम और शिवपाल से उन्होंने किस हद तक पंगा लिया था। जब उन्होंने बीजेपी ज्वाइन की तब लोगों ने यह कहा था राजनीतिक संरक्षण के लिए उन्होंने ऐसा किया। वहीं कुछ लोगों ने यह भी कहा कि बीजेपी को पूर्वांचल के लिए एक दलित चेहरे की दरकार थी,बीजेपी की वह तलाश पूरी हो गई।बृजलाल के बीजेपी में कई नेताओं से गहरे ताल्लुकात हैं।राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी उनकी नजदीकियां हैं लेकिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से उनका गहरा लगाव है। कानून व्यवस्था को लेकर वे मुख्यमंत्री को अपनी राय देते रहते हैं।यूपी मेंआज जो अपराधियों के लिए”रामना सत्य है”का फार्मूला चल रहा है, इसके पीछे बृजलाल का ही दिमाग है।

बीजेपी में बृजलाल निस्संदेह एक ऐसा दलित चेहरा है जिसकी काट न तो सपा के पास है और न ही बसपा के पास।कांग्रेस भी ऐसे चेहरे से महरूम है।बृजलाल की खास बात यह है कि पुलिस अफसर रहते हुए भी इन्होंने उस वक्त के अपने सहपाठियों को नहीं बिसारा जो बीच में पढ़ाई छोड़कर खेती किसानी या अन्य किसी धधे से जुड़ गए हों।वे जब भी गांव आते तो वे गंवई होकर ही रहते।वही पुराने सहपाठी,किसान, मजदूर आदि इनके संगी साथी होते। उनकी यही सादगी ही उन्हें औरों से अलग व सरल बनाती है।

बीजेपी जब यूपी में सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ सीएम हुए तो बृजलाल को एससीएसटी कमीशन का चेयर बना कर दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री के रूप में स्थापित किया। इस कुर्सी पर विराजते ही उन्होंने बसपा सुप्रीमो मायावती को दलितों के नकली नेता होने का पर्दाफाश किया। सबसे पहले उन्होंने दलित समाज को यह बताया कि जो आयोग दलितों के हितों की रक्षा के लिए है, उसका अपने लोगों को उपकृत करने का माध्यम बनाया गया। मायावती ने इस आयोग के अध्यक्ष पद पर किसी दलित की नियुक्ति की जगह जिसे उपकृत करना चाहा,उसकी नियुक्ति की। इसके लिए उन्होंने कानून तक बदल दिया।दलित अत्याचार के मामले में भी उन्होंने मायावती को कटघरे में खड़ा किया और दलितों को बताया कि उनका आदेश था कि दलित उत्पीड़न के मामलों में केवल मर्डर और बलात्कार जैसे मामलों में ही दलित उत्पीड़न का एफआईआर दर्ज हो।बीजेपी से जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत उन्होंने बसपा को दलितों की नकली पार्टी बताकर उन्हें बीजेपी के साथ जुड़ने की अभियान से की। पूर्वांचल से ताल्लुक रखने वाले एक दलित बसपा नेता ने कहा कि बृजलाल का राज्यसभा में भेजना बीजेपी का यूपी और खासकर पूर्वांचल के दलित समाज को एक संदेश भी है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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