कौन थे डॉ अब्दुल बारी खान?उन्हें क्यों कहा जाता है पूर्वांचल का सर सयैद?आइये,जानते हैं सर सयैद डे पर शिक्षा जगत की एक बड़ी शख्सियत के बारे में जिन्होंने सर सयैद के मिशन को पूरा करने के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया।

पूर्वांचल भारत शिक्षा

सगीर ए खाकसार । इंडो नेपाल पोस्ट
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक और प्रगति शील विचार धारा के पोषक व महान समाज सुधारक सर सयैद अहमद खान मुसलमानों में शिक्षा के ज़रिए व्यापक बदलाव के हिमायती थे ।आज 17 अक्टूबर को उनकी जयंती है ।जिसे सर सयैद डे के रूप में मनाया जाता है।सर सयैद से प्रेरणा लेकर शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वालो की कोई कमी नही है।सिद्धार्थ नगर के डुमरियागंज तहसील के डॉ अब्दुल बारी खान खान शिक्षा जगत की बड़ी शख्सियत थे ,उन्होंने सर सयैद के मिशन को पूरा करने के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया ।उन्हें पूर्वांचल का सर सयैद भी कहा जाता है।

शिक्षा जगत के महान पुरोधा डॉ अब्दुल बारी खान पूर्वांचल में शिक्षा क्रांति के लिए हमेशा याद किये जायंगे।उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में शानदार सेवा की मिसाल पेश की है।वो उम्र के नवें दशक में प्रवेश कर चुके थे ।लेकिन न थके थे और न कभो ठहरे थे।वो उम्र के आखिरी पड़ाव में भी अपने दुआरा स्थापित सभी शिक्षण संस्थानो की नियमित रूप से निगरानी दिन भर करते थे।शिक्षा के ज़रिए वो समाज और देश मे ब्यापक बदलाव के पक्षधर थे।उनका मानना था कि खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा है।जब व्यक्ति शिक्षित होगा तभी आत्म निर्भर होगा,देश आगे बढ़ेगा।उन्होंने जिला सिद्धार्थ नगर में कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की ,जिसमें गर्ल्स कॉलेज,तकनीकी शिक्षा केन्द्र ,इंटर कालेज ,पब्लिक स्कूल और अनाथालयों तक की स्थापना शामिल हैं।
डॉ अब्दुल बारी खान के जीवन का मात्र एक उद्देश्य शिक्षा को जन जन तक पहुंचाना था।उन्होंने इस निमित्त अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया ।शांति के अग्रदूत महामानव गौतम बुद्ध की धरती सिद्धार्थ नगर में डॉ अब्दुल बारी खान ने ताउम्र शिक्षा का अलख जगाए रखा। उम्र के आखिरी पड़ाव पर जब लोग अपनी वसीयत लिख रहे होते हैं ,डॉ अब्दुल बारी खान जैसे शिक्षा जगत के दिग्गज अपने अदम्य साहस और उत्साह से शिक्षा की क्षेत्र में क्रंति लाने की दिशा में पूरी तन्मयता से लगे हुए थे।उनकी सोंच यह नहीं थी कि उन्होंने विरासत में क्या पाया?उनकी सोंच यह थी कि वो आने वाली पीढ़ी को विरासत में क्या देंगें?उसी पीढ़ी को एक आदर्श ,विकसित,और समृद्ध समाज देने के लिए पूरी तरह जीवन भर कटिबद्ध रहे। वो ऊर्जावान थे।सकारत्मक और उदारवादी सोंच उनके ब्यक्तित्व की विशिष्ट पहचान थी ।सिद्धार्थ नगर जिले में दीनी,आधुनिक और तकनीकी शिक्षा केंद्रों की स्थापना कर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया वो अपने इस प्रयास में आखिरी दम तक क्रिया शील भी रहे।
पड़ोसी जिला बलरामपुर के एक छोटे से गांव कुंड,सिखवैया( बौडीहार) में डॉ अब्दुल बारी खान का जन्म 19 नवंबर 1936 को हुआ था।उन्होंने अपनी आरंभिक शिक्षा गांव में ही स्थित मदरसा जामिया सिराजुल उलूम ,बौडीहार में पाई।इसके अलावा दारुल हदीस रहमानिया दिल्ली,जामिया रहमानिया बनारस में पाई।1958 में उन्होंने तिब्बिया कालेज से बीयूएमएस किया।पेशे से चिकित्सक डॉ खान ने तालीम के ज़रिए समाज मे व्याप्त कुरीतियों और पिछड़े पन को दूर करने का बीड़ा उठाया और अपने मकसद को हासिल करने के लिए पूरे जिले में कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना की।रास्ते में दुश्वारियां बहुत थीं ।संसाधन सीमित था।लेकिन वो डिगे नहीं ।कहा जाता है न कि जब हौसले बुलंद हो ,और इरादे नेक हों,और दिल में सच्चाई हो तो मुश्किल से मुश्किल काम मे ईश्वर भी मदद करता है।कुछ ऐसा ही हुआ डॉ खान के साथ।वो एक एक करके शिक्षा की ज्योति जिले में जलाते गए परिणाम स्वरूप एक बड़ी आबादी उनके संघर्षों और त्याग की वजह से शिक्षा से लाभान्वित हो रही है।उनके शिक्षा संस्थान से शिक्षा हासिल करने वाले छात्र जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में प्रवेश के लिए जाते हैं।
उन्हें स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी,लेखक और शिक्षाविद और डुमरिया गंज विधान सभा के पहले विधायक रहे क़ाज़ी अदील अब्बासी,सेनानी और सांसद स्व0 क़ाज़ी जलील अब्बासी जैसी शख्सियतों का सानिध्य मिला।क़ाज़ी जलील अब्बासी डुमरिया गंज लोक सभा से कई बार सांसद रहे।बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी क़ाज़ी अदील अब्बासी ने दीनी तालीमी काउंसिल के ज़रिए प्राइमरी स्तर के बस्ती जिले में बड़े पैमाने पर शिक्षा केंद्रों की स्थापना की थी।स्व0 अदील अब्बासी ने अपनी एक किताब में डॉ अब्दुल बारी खान के शिक्षा और समाज के प्रति समर्पण का उल्लेख किया है।
डॉ अब्दुल बारी खान को बहुत पहले ही इस बात का इल्म हो गया था कि पढ़ी लिखी लड़की , रौशनी है घर की।इसलिए लड़कियों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की मकसद से 1984 में डुमरिया गंज में गर्ल्स कॉलेज की स्थापना की।जिसकी शुरुआत महज दो कमरों से हुई थी।आज बड़ा भवन है और सारी सुविधाएं।बड़ी तादाद में बालिकाएं शिक्षा हासिल कर रही हैं।उसके दो वर्षों के बाद 1986 में जिले के डुमरिया गंज में उन्होंने अपने मानवीय मूल्यों और संवेदनशीलता का परिचय देते हुए एक अनाथालय की स्थापना की।उन यतीम और गरीब बच्चों की सुधि ली जिन्हें शिक्षा तो दूर की बात दो वक्त की रोटी और कपड़ा भी मयस्सर नहीं होता था ।फिलवक्त अनाथालय में करीब डेढ़ हजार बच्चों का भरण पोषण हो रहा है।उन्हें शिक्षा मिल रही है।उनके दुआरा स्थापित इस अनाथालय में बच्चे और बच्चियों दोनों की देखभाल निः शुल्क की जाती है।यह अनाथालय फिलवक्त पूर्वांचल का सबसे बड़ा अनाथालय है।
डॉ खान बहुत ही दूरदर्शी शख्सियत के मालिक थे। उन्हें पता था कि आने वाला दौर ज्ञान और तकनीक का होगा ।जिनके पास जितना ज्ञान और विकसित तकनीक होगा। वह देश और समाज उतना ही उन्नति करेगा।अपने इसी सपने को साकार करने के उद्देश्य से उन्होंने 1995 में खैर टेक्निकल सेंटर की स्थापना की थी।जिसमें मिनी आईटीआई के ज़रिए सिलाई,कढ़ाई,कम्प्यूटर, इलेक्ट्रिशियन, फिटर,आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।बड़ी तादाद में युवा यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर अपना जीवकोपार्जन कर रहे हैं। तकनीकी केंद्र खैर टेक्निकल सेंटर युवाओं को आत्म निर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।डॉ अब्दुल बारी खान ने इन पंक्तियों के लेखक से बहुत पहले एक मुलाक़ात में कहा था कि तकनीकी शिक्षा कुशल जनशक्ति का सृजन कर औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाकर देश को उन्नति की मार्ग पर ले जाएगा। शिक्षा के जरिये समाज मे व्याप्त कुरीतियों को दूर किया जासकता है।वही देश और समाज तेज़ी से आगे बढ़े जिन्होंने समय रहते शिक्षा के महत्व को समझा।अपने जिले की साक्षरता दर करीब 67.18 है।उच्च और तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है।
डॉ अब्दुल बारी खान शिक्षा के अलावा सामाजिक कार्यों में भी महती भूमिका निभायी।खैर टेक्निकल सोसाइटी के ज़रिए गरीबों को निःशुल्क कंबल वितरण,शुद्ध जल उपलब्ध करवाने की मकसद से नल लगवाने,आदि का भी पुनीत कार्य भी किया।उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाई ।उनके सबसे बड़े पुत्र इरशाद अहमद खान पेशे से आर्किटेक्ट हैं।दूसरे पुत्र अफज़ल खान कंप्यूटर साइंस से पोस्ट ग्रेजुएट हैं।उनके तीसरे नंबर के पुत्र पेशे से चिकित्सक हैं और डुमरिया गंज में ही प्रैक्टिस करते हैं।चौथे बेटे जावेद खान पुणे में रहते है उन्होंने भी बीटेक और एमबीए की शिक्षा के बाद जल संशोधन के पेशे से जुड़े हुए हैं।उनके पांचवें पुत्र रियाज़ खान अपने पिता के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं जिला मुख्यालय सिद्धार्थ नगर में खैर पब्लिक स्कूल के नाम से अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालय का संचालन कर रहे हैं।
डॉ अब्दुल बारी खान दुआरा स्थापित शिक्षण संस्था में शिक्षा हासिल करने वाले छात्र छात्राओं ने देश विदेश में सफलता के परचम लहराए हैं।डुमरियागंज के ग्राम कठवतिया निवासी जुनैद अहमद ओएनजीसी बॉम्बे में उच्च पद पर तैनात हैं।डुमरिया गंज के साद फखरुद्दीन मदीना यूनिवर्सिटी में है।मलिक अवसाफ,शादाब अहमद,नदीम अहमद आदि पूर्व छात्र पीसीएस में चयनित होकर अपनी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।इनके कालेज के छात्र छात्राएं यूपी बोर्ड,मदरसा शिक्षा परिषद ,सीबीएसई आदि की परीक्षाओं में भी सफलता का परचम लहराते हैं।

डॉ खान से प्रेरणा लेने वाले युवाओं की ज़िले में कोई कमी नहीं है।उन्होंने खुद तो शिक्षा के महत्व को समझते हुए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की साथ ही इस क्षेत्र में काम कर रहे युवाओं की रहनुमाई भी की और उन्हें हर स्तर पर सहयोग भी किया।अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 अनवारुल हक खान कहते हैं कि शिक्षा सभी के जीवन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाती है।जिस समाज ने शिक्षा के महत्व को समझा उसे प्रगति के मार्ग पर ले जाने से कोई रोक नहीं सकता है।देश और राष्ट्र निर्माण में शिक्षा केंद्रों की स्थापना एक महत्वपूर्ण कदम है।डॉ अब्दुल बारी खान जैसी महत्वपूर्ण शख्सियतें हर रोज़ जन्म नहीं लेती हैं।हम लोग बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें उनका मार्गदर्शन मिला।वो बहुत ही सरल स्वाभाव के व्यक्तित्व थे।सबसे बड़ी बात यह है कि वो युवाओं को अपने आदर्शों और जीवन मूल्यों से प्रेरित करते थे।करीब 90 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी वो बहुत ऊर्जावान दिखते थे।
डॉ बारी खान शांति के अग्रदूत महात्मा गांधी से भी प्रभावित थे उनका मानना था कि “जैसे सूर्य सबको एक सा प्रकाश देता है,बरसात सब के लिए बरसती है,उसी तरह विधा वृष्टि सब पर बराबर होनी चाहिए।
इसमें कोई संदेह नहीं डॉ अब्दुल बारी खान ने शिक्षा की ज्योति के जरिये अंधेरों को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है।निश्चित रूप से उनकी शख्सियत प्रशंसनीय के साथ साथ हम सब के लिए प्रेरणादायी भी है।फ्रेंच कवि विक्टर मैरी ह्यूगो ने कहा था “वह व्यक्ति जो एक स्कूल खोलता है,एक जेल बन्द करदेता है”।डॉ अब्दुल बारी खान ने कई स्कूल खोलकर न जाने कितनी जेलों को बन्द करने का काम किया है।10 जुलाई 2020 को इल्म की शमा जलाने वाले डॉ अब्दुल बारी खान इस दुनिया ए फानी से कूच कर गए। लेकिन उनकी जलाई शमा हमेशा रोशन रहेगी।
शाम दर शाम जलेंगे तेरी यादों के चराग़।
नस्ल दर नस्ल तेरा दर्द नुमाया होगा।।

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