फ़्लैश बैक नेपाल:तुम्हें याद हो ,के न याद हो,न तो मस्तों की वो टोली है और न ही सारंगी की मीठी धुन

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सग़ीर ए खाकसार, । इंडो नेपाल पोस्ट


वैसे तो पूरा मुल्क नेपाल ही अपनी खूबसूरती ,भोलेपन,सादगी,निश्छलता और सरल स्वभाव की वजह से जाना जाता है।लेकिन एक समय में  इंडो नेपाल बॉर्डर पर स्थित कृष्णा नगर और आसपास के सीमावर्ती क्षेत्रों का नज़ारा ही कुछ और था।


फिलवक्त यह एक सेक्युलर देश है।नहीं भी था तो भी किसी भी धर्म के अनुयायियों को कोई दिक्कत नहीं थी।राजतंत्र का समय रहा हो,या हिन्दू राष्ट्र का,कभी किसी को कोई समस्या नहीं हुई।दंगे फसाद,साम्प्रदायिकता आदि के वायरस  से हमेशा ही अछूता था नेपाल।शांति का आलम तो यह था कि दूर दूर तक चोरी,चमारी और हिंसा की वारदात कहीं सुनाई नही पड़ती थीं।गर्मियों के दिनों में तो लोग अपने अपने घरों के बाहर ही सोते थे।दरवाज़े भी  खुला छोड़देते थे या बन्द करना भूल गए तो उन्हें किसी अनहोनी की चिंता नहीं सताती थी।


इंडो नेपाल बॉर्डर पर स्थित कृष्णा नगर में करीब तीन दशकों पूर्व का नज़ारा कुछ ऐसा ही होता था। सरहद पर रहने वाले दोनो देशों भारत और नेपाल  के नागरिकों को कभी ये महसूस ही नहीं होता था कि वो दो अलग अलग देशो  के नागरिक हैं।ज़्यादा सुरक्षा एजेंसियों भी नहीं थी और न किसी अनहोनी की आशंका ही होती थी।अब तो दोनों देशों के सरहदों पर कई सुरक्षा एजेंसियां तैनात हैं।दोनों तरफ कड़ा पहरा है।कोरोना महामारी ने लोगों की समस्याओं में और अभी इज़ाफ़ा कर दिया है।कई माह से बॉर्डर से सामान्य आवाजाही न होने की वजह से बाजार टूट रहे हैं,बाज़ारों से रौनक गायब है।


लेकिन एक समय ऐसा भी था कि इंडो नेपाल बॉर्डर पर स्थित कृष्ण नगर का नज़ारा देखने लायक होता था।बजार में चहल पहल  होती थी। चारों तरफ खुशनुमा माहौल और शांति थी।लोगों की दिन चर्या में भागदौड़ नहीं थी।सूर्यास्त के बाद नेपाल का नज़ारा और भी मस्त और रंगीन हो जाता था।उस वक़्त आम तौर पर लोग गर्मियों में छतों पर ही सोते थे।नेपाल में यह समय फक्कड़पन मस्ती,और हुल्लड़पन का था।लोग बाग कम कमाते थे लेकिन मस्त रहते थे।रात में छोटी छोटी टोलियां बनाकर लोग  गाते ,बजाते ,और नाचते थे।वह नज़ारा भी क्या खूब होता था।रात में  किसी भी छत से नाचने और गाने का नज़ारा देखा जासकता था।लोग खूब झूमते थे,नाचते थे।मस्ती में डूबे रहते थे।न तनाव था न अवसाद।तब सारंगी की मीठी धुनें माहौल में चाशनी की मिठास घोल देती थीं ।
चोरी,मानो नेपाल में कोई बड़ी वारदात हो।उस वक़्त नेपाल में चोरी करने पर “काठी”मार देने का प्रावधान था।यह एक तरह की  सज़ा थी ।यह राजतंत्र के समय की बात है।


लेकिन अब यहां के आबो हवा में वो पुरानी बात कहां?आपा धापी और आधुनिक जीवन शैली ने जीने का अंदाज़ बदल दिया है। लोगों की खुशियां एक दायरे में सिमट गयी हैं।लगता है यहां के आबो हवा को भी किसी की बुरी नज़र लग गयी है।त्योहारों पर माहौल खराब होना आम बात है।चुनावों में जाति पात का बोलबाला रहता है।अब  तो न मस्तों की वो टोली है,और न ही सारंगी की वो मीठी धुन?जो तन और मन को शांति प्रदान करती थी।

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