स्मृति शेष:सत्यदेव सिंह, राजनीति के ‘सत्य “का अस्त होना

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डॉ प्रकाश चंद्र गिरी

बलरामपुर के पूर्व सांसद और भा ज पा के वरिष्ठ नेता सत्यदेव सिंह जी के निधन का समाचार सुनकर बहुत  दुखी हूं।परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वे दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें और परिवार को कष्ट सहने की शक्ति दें।अभी कुछ दिन पूर्व ही स्व. सत्यदेव सिंह जी की धर्मपत्नी और पूर्व ज़िला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती सरोज सिंह जी का भी निधन हुआ है।2020 जैसा साल फिर कभी न आये।कोरोना की त्रासदी ने अनेक मित्रों-परिचितों और शुभेच्छु सज्जनों को सदा के लिए दूर कर दिया।समाचारों के अनुसार,श्री सत्यदेव सिंह जी की कोरोना रिपोर्ट भी निगेटिव आ गयी थी किन्तु जब उन्हें उनकी धर्मपत्नी के निधन की सूचना दी गयी तो  हार्ट अटैक के कारण उनका देहांत हो गया।

सत्यदेव सिंह जी  मंडल के हमारे परिचित  नेताओं में सम्भवतः सर्वाधिक प्रबुद्ध थे।मुझे याद है कि सन 1990 के किसी माह में वे सरस्वती शिशु मंदिर में स्वामी विवेकानंद जी पर आयोजित किसी कार्यक्रम में अतिथि थे।उनके भाषण से पूर्व मेरा व्याख्यान था जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए और कार्यक्रम के बाद उन्होंने मुझे बुलाकर बहुत प्रशंसा की,परिचय पूछा,अपना स्नेह दिया और मिलते रहने के लिए कहा।बाद में वे 91 और 96 में बलरामपुर से सांसद चुने गए।

उनके दल में सक्रिय न रहते हुए भी वे जहां भी मिलते ,मुझे बहुत स्नेह देते।अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर उनका व्यापक अध्ययन था।उनसे बात करने में किसी बुद्धिजीवी से बात करने का संतोष मिलता था।मैं यह कैसे भूल सकता हूँ कि उन्होंने मुरली मनोहर जोशी ,राजनाथ सिंह,कल्याण सिंह ,सुषमा स्वराज आदि अनेक वरिष्ठ नेताओं के जनपद में आगमन पर मुझे विशेष रूप से उन लोगों से मिलवाया।वे जब पहली बार सांसद बने तो मैं एक बार गोंडा में उनके आवास पर मिलने गया तो उन्होंने कोई काम बताने को कहा।मैं पहले से कुछ सोच के नहीं गया था किंतु उनके पूछने पर मैंने अपने लिए असलहे के लाइसेंस हेतु कहा।उस समय हम लोगों का ज़िला गोंडा ही था।शासन ने कई वर्षों से असलहों का लाइसेंस रोक रखा था।मेरे कहते ही स्व. सत्यदेव सिंह जी ने गोंडा डी एम को फोन मिलाया और आदेशात्मक लहज़े में मेरे लायसेंस के लिए कहा।डी एम ने मुझे बुलाया और न सिर्फ मेरा बल्कि मेरे अनुज का भी लायसेंस स्वीकृत किया।उसके बाद तो मैं सत्यदेव जी मुरीद हो गया।बाद में वे बहुत बार हमारी हरैया कोठी पर भी आये और मेरे अस्वस्थ पिता का हालचाल लिया।

सत्यदेव जी हमारे मंडल के अन्य नेताओं से अनेक अर्थों में भिन्न थे।वे छरहरी लंबी काया के व्यक्ति थे और उनकी बातचीत का लहज़ा बेबाक और स्पष्ट होता था।वे राजनीतिक व्यस्तता के बावजूद अच्छी पुस्तकों का अध्ययन किया करते थे।उनकी अभिव्यक्ति प्रखर और ओजस्वी रहती थी।अनेक लोग इसी कारण उन्हें अभिमानी भी कहते थे।अपने दोनों संसदीय कार्यकाल में वे मंडल के सर्वाधिक ताकतवर नेता थे।भा ज पा के राष्ट्रीय स्तर के नेता भी उनका बहुत सम्मान करते थे।वे जब शांत और सुस्थिर मूड में होते थे तो बहुत अच्छा व्याख्यान देते थे।जीवन के अनेक दायित्वों के निर्वहन-क्रम में इधर एक डेढ़ दशक से उनसे मिलना बहुत कम हो गया था।उनसे आखिरी भेंट अटल भवन के उदघाटन के दिन, 2-3 साल पहले हुई थी।

आज उन दिनों की स्मृतियां मानस में घूम रही हैं जब सत्यदेव सिंह जी सांसद हुआ करते थे और उनकी पत्नी ज़िला पंचायत की अध्यक्ष , तब पूरे मंडल में, शासन-प्रशासन से लेकर समाज तक, हर जगह उनके कहे का सम्मान होता था। यह उन आदरणीय दम्पति का भीतरी गहरा अनुराग ही था कि लगभग महीने भर के भीतर ही दोनों लोगों ने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा।लोग अपने व्यक्तित्व की अनेक यादें छोड़कर न जाने किस लोक में चले जाते हैं ,बचती हैं सिर्फ स्मृतियां ।

परमेश्वर उनके परिजनों को यह अपार कष्ट सहने की शक्ति दें।स्व.सत्यदेव सिंह जी को सादर नमन करते हुए हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

(लेखक एम एल के पीजी कालेज,बलरामपुर के एसोसिएट प्रोफेसर हैं)

सग़ीर ए खाकसार

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