गुरु है मेरा अनमोल :प्राउड ऑफ यू दिनेश पांडेय सर!

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सग़ीर ए खाकसार

मेरे परम आदरणीय गुरु श्री दिनेश चंद्र पांडेय पूर्व प्रधानचार्य रतन सेन इंटरकालेज, बाँसी,सिद्धार्थ नगर से एक लंबे अरसे के बाद मुलाक़ात हुई।।हालांकि मुलाक़ात बहुत छोटी थी लेकिन कई मायने में बहुत ही महत्वपूर्ण।हमेशा  तपाक से मिलने वाले और बहुत ही गर्म जोशी से सीने से चिपका लेने वाले हम सबके  गुरु इस बार शारीरिक रूप से थोड़ा कमज़ोर  और निढ़ाल सा दिखे। जैसे बुढ़ापे की जंजीरों ने जकड़ लिया था। उम्र पर बेरहम वक्त का सितम भारी पड़ता दिखाई दिया। चेहरे की चमक दमक पर उम्र की धूल साफ साफ दिखाई पड़ी।

नब्बे के दशक में इंटरमीडिएट में भौतिकी पढ़ाने वाले श्री पांडेय मेरे चुनिंदा और पसंदीदा गुरुओं में से एक हैं।
विषय ज्ञान के अलावा वैश्विक राजनीति,साहित्य और मानवीय मूल्यों से परिचित करवाने वाले श्री पाण्डेय सर का उस वक़्त कोई सानी नहीं था । कुछ भी पढ़ाने से पहले हर रोज़ कम से पांच मिनट का आपका व्यख्यान राजनीति,साहित्य और समसामयिक विषयों पर केंदित होता था।रूस का विखण्डन और गोरबच्योब के पतन के दिन का उनका व्याख्यान आज भी स्मृतियों में शेष है। शीतयुद्ध के दौरान रूस का स्लोगन बच्चों को बताना नहीं भूलते थे।रूस की ताकत को वो इस रूसी स्लोगन के हवाले से बताते थे कि *हम संसार मे किसी भी छड़ कहीं पर भी विस्फोट कर सकते हैं”।बताते है रूस का यह स्लोगन नब्बे के दशक में बहुत मशहूर था।महान कवि और गायक प्रदीप कुमार से सबसे पहले उन्होंने ही परिचित करवाया उनका कालजयी  गीत “देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान” वह टेपरिकॉर्डर से सुनाते थे जब यह गीत बजता था तो पूरे कमरे में सन्नाटा छा जाता था।सभी बच्चे पूरी संजीदगी के साथ इस गीत को सुनते थे।सोवियत संघ का विखण्डन और मिखाईल गोर्बाचेव का पतन,मंडल कमंडल आदि विषयों पर भी बातें करते थे।


भाँतिकी के पढ़ाये उनके कुछ फॉर्मूले और परिभाषाएं तो तीन दशकों के बाद आज भी अक्षरशः याद हैं जैसे कल की बात हो,जैसे आवेश प्रवाह की दर को धारा कहते हैं।या फिर प्रेरित विधुत वाहक बल सदैव उस कारण का विरोध करता है जिससे उसकी उत्पति होती है।जबकि यह सब पढ़ने के बाद दोबारा कभी न पढ़ने और न ही कभी किसी को पढ़ाने का मौका मिला।
नब्बे का दशक मंदिर मस्जिद विवादों के लिए भी जाना जाता है।कालेज में कुछ अध्यापक क्लास लेने के बजाए झोपड़ी नुमा बने अध्यापक कक्ष में इन्हीं मुद्दों पर जमकर बहस बाजी और शोर शराबा करते थे।पास ही में चल रहे दिनेश सर का क्लास डिस्टर्ब हो जाता था।पांडेय सर को यह सब अच्छा नहीं लगता था और वह इसी झोपड़ी को ही  सबसे बड़ा” विवादित स्थल” मानते थे और कभी कभी तो वह इतने गुस्से में होते कि हम विद्यार्थियों से इसे उखाड़ फेंकने का आह्वान करदेते थे।देश, दुनिया और सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से बोलने वाले पांडेय सर से आजकी मुलाकात ने अंदर तक हिला का रख दिया।सर, के याददाश्त की डोर कमज़ोर हो गयी है।मुझे अपनी पहचान बताने के लिए कई वाक़ये बयाँ करने पड़े, तब जाकर उन्होंने मुझे पहचाना। इसबार की मुलाकात भले ही बहुत संक्षिप्त रही हो लेकिन अतीत के पुराने पन्ने एक के बाद एक ज़रूर खुलते गए।ईश्वर आपको लंबी उम्र और अच्छी सेहत दे।
प्राउड ऑफ यू सर!

“गुरु आपके उपहार का
कैसे चुकाऊं मोल
लाख कीमती धन भला
गुरु है मेरा अनमोल।

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