जौन एलिया की जयंती पर विशेष:एक ही शख्स था ज़हान में क्या !

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14 दिसम्बर को भारत के अमरोहा (उ0प्र0) में हुआ था जन्म

ध्रुव गुप्त

भारत के अमरोहा (उ.प्र) में जन्मे और देश-विभाजन के दस साल बाद पाकिस्तान जा बसे जौन एलिया का शुमार बीसवी सदी के उत्तरार्ध्द के ,कुछ महान शायरों में होता है। एलिया ने अपने लिए अपने पूर्ववर्ती और समकालीन शायरों से अलग अभिव्यक्ति का एक बिल्कुल अलग अंदाज़ और जुदा तेवर विकसित किया था था। प्रेम के टूटने की व्यथा, अकेलेपन और अजनबीयत के गहरे एहसास उनकी शायरी में जिस तीखेपन के साथ व्यक्त हुए हैं, उनसे गुज़रना बिल्कुल अलग-सा एहसास है।

सीधे-सरल शब्दों में बड़ी से बड़ी और जटिल से जटिल बात कह देने का हुनर उन्हें पता था। अपनी फक्कड तबियत, अलमस्तजीवन जीवन शैली, हालात से समझौता न करने की आदत और समाज के स्थापित मूल्यों के साथ अराजक हो जाने तक उनकी तेज-तल्ख़ झड़प ने उन्हें ज़िन्दगी में अकेला तो किया, लेकिन लेखन में धार भी बख्शी। उनकी शायरी में जो अवसाद और अकेलापन है, उसकी वज़ह उनकी निज़ी ज़िन्दगी में खोजी जा सकती है। पाकिस्तान की सुप्रसिद्ध पत्रकार जाहिदा हिना से प्रेम विवाह और अप्रिय स्थितियों में तलाक के बाद एलिया ने न सिर्फ ख़ुद को शराब में डुबोया, बल्कि अपने को बर्बाद करने के नए-नए बहाने और तरीक़े इज़ाद करने लगे। लंबी बीमारी के बाद त्रासद परिस्थितियों में 2002 में उनका निधन हुआ। आज मरहूम जौन एलिया के जन्मदिन (14 दिसंबर) पर खेराज-ए-अक़ीदत, उनकी एक ग़ज़ल के चंद अशआर के साथ !

ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मेरे गुमान में क्या

अब मुझे कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या

बोलते क्यों नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़बान में क्या

मेरी हर बात, बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या

यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था ज़हान में क्या

(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)

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