कविता और व्यक्तिगत जीवन:अष्टभुजा शुक्ल

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हिंदी के प्रिय कवि नरेश सक्सेना जी के युवा पुत्र राघव सक्सेना का पिछले दिनों हृदयाघात से निधन हो गया।राघव युवा थे और सामजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में प्रतिभाग करते थे ।उन्होंने अपनी पहचान एक सजग नागरिक और कलाकार के रूप में बनायी थी ,उनके असामयिक निधन से प्रिय कवि नरेश सक्सेना का अंदर तक हिल जाना स्वाभाविक है,ईश्वर नरेश जी को इस वज्रपात को सहने की शक्ति प्रदान करे।हिंदी के वरिष्ठ कवि अष्टभुजा शुक्ल जी ने अपनी संवेदनाओं को यूँ प्रकट किया।

इण्डो नेपाल की खास प्रस्तुति

अष्टभुजा शुक्ल

वरिष्ठ कवियों में सबसे ज्यादा मुलाकात मेरी नरेश सक्सेना जी से ही हुई है।उनकी छरहरी देह और सक्रिय जीवन का हर कोई कायल है।नरेश जी मे परंपरा से नफासत है लेकिन नफासत भी इतनी आत्मीय हो सकती है, इसका अनुभव मुझे नरेश सक्सेना जैसे कवि से मिलकर हुआ।नरेश जी ने कयी बार आमंत्रित किया कि आप लखनऊ आइए।हम लोग इच्छानुसार मिलकर कविता पर खूब बात करेंगे।अच्छा रहेगा।मैं भी कहता बिल्कुल आऊँगा और साथ रहा जाएगा।बड़े होते हुए भी नरेश जी से इतनी छूट मैंने ले रखी है और उन्होंने दे रखी है कि मैं अपनी आदत के अनुसार उनसे खूब हास परिहास और चुटकी भी लेता रहा हूँ।नरेश जी कभी ठहाके से तो कभी मंद स्मित से मेरे मनोविनोद मे सहयोग करते रहे।

लेकिन नरेश जी !….आज क्या करूँ….. रो रहा हूँ…… सचमुच में रो रहा हूँ……आपसे लिपटकर रो रहा हूँ…….. रोना आदमी की कमजोरी नहीं है न?……ओह, राघव! बेटे राघव….. तो ……कुछ नहीं……. नहीं कुछ तो है कि हम रो रहे हैं।…….तो एक बार मैं…. सही मे….. सही बोल रहा हूँ भाई……मैं कोशिश करता हूँ कि कभी झूठ न बोलना पड़े………

तो मैं सही मे एक बार नरेश जी के घर पहुंच गया, गोमती नगर लखनऊ।संयोग ही कुछ ऐसा रहा।नरेश जी डोल्ची से काफी पहले से ही सेब खाने और उनकी जेब से साधिकार टाफियां निकालकर खाने की लत पहले ही लग चुकी है ।…..तो नरेश जी अपने घर ले गए।अब क्या कहूँ…. ऐसा सहज आतिथ्य…… तो राघव आए।नौजवान।मुझसे भी मिले ,बहुत प्रेम पूर्वक।कविता पर….फिल्म पर …..कल्चर पर….अंग्रेजी पर अधिकार… और एक सांस्कृतिक दखल…. वे सोने के वक्त मुझे ऊपर कमरे तक ले गए बैग उठाकर।

नरेश जी ने मुझसे अपने व्यक्तिगत जीवन की सारी कुण्डली साझा की है, जाने क्यों।जिसे जानकर उनके साहस और सामाजिक चेतना के प्रति मैं और ममतालु होता गया…… बाद में नरेश जी ने राघव के जीवन के बारे में जो बातें साझा कीं ,उनमें एक पिता का मौन हाहाकार महसूस हुआ…….यह मेरी कल्पना भी हो सकती है।

एक बार हम रौ में थे तो हमने नरेश जी से इसरार किया। उन्होंने कहा, अष्टभुजा जी,अच्छा आपका मन रखने के लिए दो बूंद ढाल दीजिए।अब बिल्कुल छोड़ दिया है।फिर जब राघव के बारे मे युवा बेटे के बारे में, उनके मुंह से कहानी सुनी तबसे मैंने नरेश जी से इस तरह का कोई इसरार नहीं किया।हर सन्तान नचिकेता होती है और हरपिता बाजश्रवस….तो नरेश जी….हमें खुद को थामना ही है।यही मनुष्य की नियति है।राघव को श्रद्धांज…..

(लेखक हिंदी के वरिष्ठ कवि हैं,हिंदी कविता में अपनी विशिष्ट योगदान के कारण उन्हें “केदार सम्मान “व श्रीलाल शुक्ल स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया है)

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