अटल जयंती विशेष:बलरामपुर से जुड़ी स्मृतियाँ, मुंशियाईन के पेड़े व मीठी दही के मुरीद थे अटल जी!

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भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने भारत यात्रा पर आये पर एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से उनका परिचय करवाते हुए कहा था इन से मिलिए !ये हैं अटल बिहारी बाजपेयी!हालांकि ये मेरे घोर आलोचक है और हमेशा मेरी आलोचना करते हैं लेकिन ये देश के उभरते हुए नेता है और इनमें मैं भविष्य की संभावनाएं देखता हूं।

25 दिसम्बर अटल जयंती पर इण्डो नेपाल पोस्ट की विशेष प्रस्तुति!

सग़ीर ए खाकसार


25 दिसम्बर भारतीय राजनीति के एक ऐसे राजनेता का जन्म दिन है जिनका सम्मान उनके राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी भी किया कर थे।वो एक सफल राजनेता,कवि ,सभी के लाडले व भारत के तीन बार प्रधामंत्री रहे उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया था।भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने भारत यात्रा पर एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री से उनका परिचय करवाते हुए कहा था इन से मिलिए !ये हैं अटल बिहारी बाजपेयी!हालांकि ये मेरे घोर आलोचक है और हमेशा मेरी आलोचना करते हैं लेकिन ये देश के उभरते हुए नेता है और इनमें मैं भविष्य की संभावनाएं देखता हूं।उनके आलोचक बस इतना ही कहा करते थे कि “राइट मैन इन रांग पार्टी” ।


अटल जी का सम्बंध बलरामपुर से भी था वो पहली बार यहां से सांसद बने थे। बलरामपुर की धरती साहित्यिक, राजनैतिक व सामजिक रूप से हमेशा उर्वरशील रही है।अली सरदार जाफरी,बेकल उत्साही सरीखे आलमी शोहरत याफ्ता शायरों की यह जन्म भूमि है तो वहीं दूसरी और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की सियासी कर्म भूमि के रूप में पूरे हिंदुस्तान में अपनी अलग पहचान रखती है।अटल जी पहली बार बलरामपुर से ही लोकसभा में जनसंघ के टिकट पर पहुंचे थे।भारत नेपाल की सीमा से सटे जिला बलरामपुर से पूर्व प्रधान मंत्री अटल विहारी बाजपेयी का गहरा रिश्ता था।देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में पहली बार 1957 में वो बलरामपुर लोक सभा सीट से ही चुने गए थे।यह आज़ादी के बाद दूसरा लोक सभा का चुनाव था।जनसंघ ने उन्हें तीन स्थानों लखनऊ,मथुरा,और बलरामपुर  लोक सभा सीट से चुनाव लड़ाया था।वो लखनऊ हारे और मथुरा से जमानत जब्त हो गयी।लेकिन बलरामपुर की जनता ने उन्हें यहां से जिता कर लोकसभा में पहुंचा दिया।


आप को बता दें कि 1952 में जनसंघ को सिर्फ चार सीट मिली थी जिसमें एक सीट बलरामपुर की थी।बलरामपुर लोक सभा क्षेत्र में करीब वो डेढ़ दशक तक सक्रिय रहे।1957 में पहली बार उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी बैरिस्टर हैदर अली को पराजित किया।अटल जी की लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए 1962 में वरिष्ठ महिला नेता  सुभद्रा जोशी को अटल जी के खिलाफ मैदान में उतारा।इस बार संघर्ष बड़े कांटे का रहा।कड़े मुकाबले में जोशी जी महज 200 मतों से अटल जी को हराने में कामयाब हो पायीं।हालांकि 1967 के चुनाव में अटल जी ने यह सीट सुभद्रा जोशी से छीन कर फिर अपने झोली में डाल ली।


       अटल जी करीब 15 वर्षों तक बलरामपुर की सियासत में सक्रिय रहे।वो यहां के लोगों में रच बस गए थे।वह दौर राजनीति में सादगी और नैतिकता का था।संसाधन इतने ज़्यादा नहीं थे।राजनीति में न तो बाहुबली लोग थे और न ही चुनाव ही ज़्यादा महंगा था।अटल जी जीप से चुनाव प्रचार करते थे।कार्यकर्ताओं के घर ही रात में भोजन और विश्राम करते थे।बारिश के मौसम में उन्हें बैल गाड़ी और घोड़े का भी सहारा लेना पड़ता था।यही नहीं यहां के बड़े बुजुर्गों का कहना है कि अटल जी ने बलरामपुर जिले के गौरा चौराहा,रेहरा,और उतरौला में मूसलाधार बारिश होने पर घोड़े से जनसभा स्थल पहुंच कर जन सभा को संबोधित किया था।अटल जी को जनसंघ ने चुनाव में प्रचार प्रसार के लिए एक जीप मुहैया कराई थी।उसी जीप से अटल जी प्रचार करते थे ।कभी कभी धक्के भी लगाने पड़ते थे।अटल जी के समय के ज़्यादातर लोग अब नहीं रहे।लेकिन कुछ लोग अब भी जिंदा हैं।यहां के बड़े बुजुर्गों में उस वक्त की स्मृतियां अभी भी शेष हैं।


        साहित्यिक और सामाजिक संस्था बलरामपुर के अध्यक्ष स्व आज़ाद सिंह ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया था कि 1957 में अटल जी रेल से चुनाव लड़ने बलरामपुर आये थे।उन्हें तत्कालीन जनसंघ के महामंत्री राम दुलारे स्टेशन पर लेने गए थे।वो अटल जी को पहचान नहीं पाए और वापस आने लगे तो पीछे से अटल जी ने राम दुलारे जी को आवाज़ लगाई कि मैं हूँ अटल! वो लोग सादा लो इंसान थे।तब राजनीति सेवा का जरिया थ।
तुलसीपुर विधानसभा सभा क्षेत्र से संघ के विधायक रहे सुखदेव प्रसाद उनके पुराने साथियों में से हैं ।वो अब भी जीवित हैं और बस स्टैंड के पास रहते हैं।वो दो बार संघ के विधायक रहे हैं।यहां के बड़े बुज़ुर्ग बताते हैं कि संघ के एक समर्पित कार्यकर्ता प्रताप नारायण तिवारी  ने अटल जी को चुनाव में प्रचार में जीप मुहैया कराई थी। मुकुल चंद्र अटल जी के चुनाव प्रबंधन की ज़िम्मेदारी निभाते थे।जनसभाएं आयोजित करना और उनके पक्ष में भाषण देने का काम करते थे।उनके अहम सहयोगियों में लातबक्श सिंह,दुली चंद्र जैन,बैजनाथ सिंह,सत्येंद्र गुप्ता ,कैलाश जी,आदि थे।जो अटल जी को पूरा सहयोग देते थे।

विडंबना यह है कि अब बलरामपुर लोक सभा का नाम भी बदल दिया गया है।जहाँ से देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी कभी चुनाव लड़ा करते थे।अब इसे श्रावस्ती लोकसभा के नाम से जाना जाता है।हालांकि देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी की कर्म भूमि बलरामपुर को उनकी जन्मभूमि ग्वालियर से जोड़ने के उद्देश्य से  बलरामपुर से एक ट्रेन सुशासन एक्सप्रेस का संचालन किया जा रहा है।अटल जी ने गोंडा गोरखपुर वाया बलरामपुर रेल लाइन को मीटर गेज से ब्राडगेज में बदलने का काम किया था।जो 2014 में पुनः भाजपा की सरकार बनने के बाद पूरा हुआ।यही नही भाजपा पार्टी ने अटल भवन के नाम से देश का पहला कार्यलय बलरामपुर में स्थापित किया।


भाजपा बलरामपुर के मीडिया प्रभारी डीपी सिंह कहते हैं अटल जी रामशंकर भारतीय इंटर कॉलेज के संस्थापक सदस्य थे।कालेज में उनकी प्रतिमा लगाई गई है यह अटल जी की देश मे पहली प्रतिमा है।डीपी सिंह कहते हैं यहां से जाने के बाद भी  अटल जी कार्यकताओं का और बलरामपुर के लोगों का बहुत सम्मान करते थे।भाजयुमों के दिल्ली में सम्मेलन में मैं भाग लेने गया था ।अटल जी के सम्बोधन के बाद मैं उनका आशीर्वाद लेने के लिए दौड़ा तो सुरक्षा कर्मियों ने मुझे रोक लिया ,ये सुनने पर कि मैं बलरामपुर से आया हूँ अटल जी रुक गए और अपना आशीर्वाद दिया ।डीपी सिंह कहते है कि उनकी बहुत सी स्मृतियां बलरामपुर के कण कण में बसी हुई हैं।


                  अटल जी खाने पीने के बेहद शौकीन लोगों में से थे ।ये बात तो सभी लोग जानते हैं।बलरामपुर से भी उनके खाने पीने की शौक की आदतें गहरी जुड़ी हुई हैं।बलरामपुर की मीठी दही और पेड़ा किसी ज़माने में बहुत मशहूर हुआ करता था।मुंशियाईन के “पेड़े” और “मीठी  दही”के अटल जी बहुत बड़े मुरीद थे।अब न तो अटल जी हमारे बीच रहे और न ही मुंशियाईन ही ज़िंदा हैं।लेकिन अटल जी हम सबकी स्मृतियों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे ,और मुंशियाईन के पेड़े की “मिठास”यहां के बुजुगों की याद में आज भी मौजूद है।


भारत रत्न स्व.अटल बिहारी वाजपेयी जी के निधन पर फेसबुक पर लिखी डॉ प्रकाश चन्द्र गिरी की टिप्पणी
           — डॉ. प्रकाश चन्द्र गिरि
                  एसोसिएट प्रोफेसर
         एम.एल.के.पी.जी.कॉलेज,
                     बलरामपुर(उ.प्र.)

अटल जी नहीं रहे।देशवासियों के साथ बलरामपुर के निवासियों के लिए ये ख़बर बहुत दुखदायी है।अटल जी ने भारतीय राजनीति में जो शानदार पारी खेली उसका प्रशिक्षण उन्होंने बलरामपुर में ही प्राप्त किया था।इस क्षेत्र के सुदूर गांवों तक अनेक लोगों से उनके व्यक्तिगत संबंध थे।सन 1957 में पहली बार वे बलरामपुर से ही संसद में गये।यद्यपि हमारा परिवार कट्टर कांग्रेसी था फिर भी ये शायद उस दौर के लोगों का बड़प्पन रहा हो या अटल जी की उदारता कि हमारे स्वर्गीय पिता से उनके मित्रवत संबंध थे।हमारे क्षेत्र में जाने पर सन 57 से 67 के बीच कई बार उन्होंने हमारे घर पर रात्रि निवास किया।


कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा लिखित पुस्तक  ‘अटल जी और बलरामपुर’ में इन तथ्यों का उल्लेख है। उसमें एक क़िस्सा है कि एक बार अटल जी गांवों का दौरा कर शाम 4-5 बजे हमारी कोठी पर पहुंचे तो वे धूल में सने थे।उन दिनों खुली जीप ही प्रचलन में थी।उन्हें देखकर पिता जी ने अपने अंदाज़ में अवधी में कहा – ‘ का हो अटल जी ,आज तौ बिल्कुल भूत बना हौ ‘  अटल जी ने तुरंत अपनी हाज़िर जवाबी का परिचय दिया और बोले कि – ‘ इसीलिए तो महंत के दरबार में आया हूँ,भूत झड़वाने ‘ और लोगों के ठहाके गूंजने लगे।

ध्यातव्य है कि मेरे स्वर्गीय पिता पंद्रहवीं शताब्दी में स्थापित  शैव परम्परा के जूना अखाड़े की गद्दी हर्रैया मठ के प्रतापी महंत थे।फिर मेरे पिता ने सेवकों को आदेश दिया।अटल जी को कुएं पर ढेंकुल से पानी निकाल कर सेवकों ने जमकर नहलाया।
स्वर्गीय पिताजी हम सब को बचपन में अटल जी के कई क़िस्से सुनाया करते थे जिनमें उनकी विनोद प्रियता, हाज़िरजवाबी,विजया-प्रेम और भाषण-कला की तारीफें शामिल होती थीं।पिताजी कहते थे कि अटल जी अच्छे आदमी हैं लेकिन गलत पार्टी में पड़े हैं।दोनों लोगों में अपने अपने राजनीतिक दल को लेकर नोंकझोंक भी होती थी लेकिन परस्पर प्रेम और अपनापे के साथ।बाद में अटल जी अपने गुणों की बदौलत भारतीय राजनीति के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचे लेकिन उन्हें हमारे क्षेत्र और हमारे परिवार की याद बनी रही।जब वे प्रधानमंत्री बने तो हमारे क्षेत्र से कुछ लोग उनसे मिलने गए तो लगभग 40 वर्षों के अंतराल के बाद भी उन्होंने हमारे पिता का हालचाल पूछा और हमारे घर पर खाये सुस्वादु व्यंजनों का स्मरण किया।


  अटल जी के साथ ही संभवतः उस राजनीति का भी अवसान हुआ जो विरोधी विचारधारा के साथ भी मानवीय आधार पर सहज संबंध बनाए रख सकती थी।उनके व्यक्तिगत गुणों के बारे में कुछ भी लिखना बेमानी है क्योंकि अब पूरा देश उससे परिचित है।भारतीय जीवनादर्शों और मूल्यों के प्रति उनका प्रेम ,साहित्य और कलाओं से लगाव और एक आम इंसान की तरह अपनी कमजोरियों को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस मेरी निगाह में उन्हें बहुत बड़ा बनाता है।
भारतीय राजनीति के अप्रतिम और अविस्मरणीय पुरोधा स्व.अटल बिहारी वाजपेयी जी को हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि।

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