….की मुहम्मद से वफ़ा तू ने तो हम तेरे हैं

उत्तर प्रदेश ताज़ा खबर पूर्वांचल भारत शिक्षा समाज

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल)के जन्म दिवस 12 रबीउल अव्वल पर विशेष

सग़ीर ए खाकसार

इस्लाम धर्म के आखिरी पैग़म्बर मुहम्मद मुस्तफा (सल्ल0) का जन्म छठी सदी में मक्का में हुआ था ।उस वक़्त के हालात बहुत खराब थे।बुराईयां आम थीं।बेटियों को ज़िंदा दफन करने की परंपरा थी।औरतों की भी हालत दयनीय थी।आप(सल्ल) ने एक एक करके समाज में व्याप्त, बुराइयों,अंध विश्वासों,रूढ़ियों का खात्मा किया।प्रेम,सहिष्णुता,करुणा,सदभाव, दया,न्याय,सामाजिक बराबरी के मूल्यों की स्थापना की।समाज मे व्याप्त घृणित परम्पराओं को एक एक करके खत्म करके आदर्श समाज की स्थापना की।

महिलाओं का सम्मान व अधिकार
आप (सल्ल) ने महिलाओं को अधिकार देने व सम्मान देने का हुक्म दिया है।उन्होंने महिलाओं से अच्छे वर्ताव करने और उनकी इज़्ज़त करने का भी हुकुम दिया।उन्होंने फरमाया कि वो औरत बरकत वाली है जो पहले लड़की को जन्म दे”।आप (सल्ल)ने बेटियों को मां बाप का दुख बांटने वाली फरमाते हुए कहा कि बेटियों को न पसंद न करो,बेशक बेटियां गम गुसार हैं और अज़ीज़ हैं।हज़रत अनस बिन मलिक फरमाते हैं एक शख्स आप(सल्ल)के पास बैठा था, उसका बेटा आया और उस शख्स ने अपने बेटे को प्यार से बोसा देने के बाद अपनी गोद मे बिठा लिया।इसी दौरान फिर उसकी बच्ची आयी ,जिसे उस शख्स ने अपने सामने बिठाया। आप(सल्ल) ने फरमाया कि तुमने इन दोनों (बेटे और बेटियों ) के दरमियान बराबरी से काम क्यों नही लिया?आप (सल्ल) बेटे और बेटियों में किसी तरह का भेदभाव नहीं करते थे।

माता पिता का सम्मान
एक बार का वाक़या है एक शख्स आप (सल्ल)की खिदमत में हाज़िर हुआ और आप से पूंछा कि या रसूलुल्लाह सबसे ज़्यादा मेरे अच्छे व्यवहार का हकदार कौन है?आप ने जवाब दिया तुम्हारी माँ!उस शख्स ने फिर पूंछा कौन?आप ने फरमाया कि तुम्हरी माँ!उसने अर्ज़ किया फिर कौन?चौथी बार पूंछने पर आप ने फरमाया कि तुम्हरा बाप!(बुखारी शरीफ)

इस्लाम,जल,धरती,और पर्यवारण

इस्लाम धर्म मे पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दिया गया है।मुहम्मद(सल्ल)ने फरमाया कि अगर कयामत भी आरही हो,और तुम में से किसी के हाथ मे पौधा हो तो उसे लगा ही दो,परिणाम की चिंता मत करो।आप ने फरमाया कि जो बन्दा कोई पौधा लगाता है या खेती बाड़ी करता है,फिर उसमें से कोई जानवर,इंसान,या अन्य कोई प्राणी खाता है,तो ये सब पौधा लगाने वाली की नेकियों में शुमार किया जाएगा।जल संचयन ,और बचत का भी इस्लाम धर्म मे बड़ा महत्व है।आपने फरमाया कि जिसने अपने ज़रूरत से ज़्यादा पानी रोका और दूसरे लोगों को बंचित रखा,तो अल्लाह फैसले वाले दिन उस शख्स से अपना फ़ज़लों करम रोक लेगा।

महामारी,इस्लाम और क्वारेन्टीन


फिलवक्त पूरी दुनियां कोरोना महामारी की चपेट में हैं।आइये जानने और समझने की कोशिश करते हैं कि महामारी में इस्लाम ने किस तरह की गाइड लाइन है।बताते हैं कि एकबार तेज़ बारिश की वजह से खान ए काबा में पानी भर गया था।मौसम भी सर्दियों का था।सर्दी और बारिश को ध्यान में रखते हुए आप (सल्ल)ने सहाबियों से एलान करवाया कि लोगों से कह दो वो अपनी जो फ़र्ज़ नमाज़ है अपने अपने घरों में पढ़ें।
(सहीह बुखारी शरीफ हदीस न0 666 )

यही नही सर्दी की रातों में आप मुअज़्ज़िन को अक्सर ये हुकुम देते थे, कि लोगों से अपने घरों में नमाज़ पढ़ने का एलान कर दो।
(सहीह बुखारी 668 हदीस)
आप (सल्ल)ने महामारी की हालत में आइसोलेशन और और क्वारेन्टीन की भी बात कही है।आप (सल्ल)ने हुकुम दिया कि महामारी के समय स्वस्थ के साथ बीमार को मत बैठाओ ,आप ने फरमाया अगर तुम्हे मालूम हो कि किसी शहर में बवा (महामारी )फैली हुई हो तो तुम उस जगह कत्तई ने जाओ,और अगर तुम जिस जगह या जिस शहर में रहते हो,वहां महामारी फैली हो,तो अपना शहर छोड़ कर अन्य स्थान पर मत जाओ। अगर तुम्हें ऐसी कोई बीमारी हो जाये जिससे दूसरे इंसान के संक्रमित होने का खतरा तो तुम खुद को दूसरों से अलग(आइसोलेट) कर लो।

इस्लाम और समानता
पैग़म्बर मुहम्मद(सल्ल) ने अराफात पहाड़ी के उराना घाटी में हज यात्रा के दौरान अपने आखिरी और ऐतिहासिक बयान में समानता/बराबरी का संदेश देते हुए कहा था कि “किसी अरबी को किसी अजमी(गैर अरबी)पर कोई श्रेष्ठता हासिल नहीं है न किसी अजमी को किसी अरबी पर,न किसी गोरे को किसी काले पर ,न काले को किसी गोरे पर।इस्लाम धर्म मे श्रेष्ठता का आधार सिर्फ और सिर्फ ईमान और उसका तक़वा है।रंग जाति,नस्ल,और देश किसी के लिए भी श्रेष्ठता का आधार नही हो सकता।
मुहम्मद (सल्ल)से मुहब्बत का तकाजा यही है कि उनकी शिक्षाओं व उपदेशों को आम किया जाए,और उसे अपनी ज़िंदगी में उतारा जाए,उनके के किरदार को निजी जिंदगी में अपनाया जाए,यही मुहम्मद (सल्ल) से सच्ची मुहब्बत और इज़हार ए मुहब्बत का सही तरीका होगा।

की मुहम्मद से वफ़ा तूने तो हम तेरे हैं

ये जहां चीज़ क्या है लौह ओ कलम तेरे हैं
अल्लामा इक़बाल

Loading