गुरु है मेरा अनमोल:नैतिकता,मूल्यों व आदर्शों का पाठ पढ़ाने वाले गुरु उमाशंकर शुक्ल

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निज़ाम अहमद खान

मैं तो चाक पे पड़ी,कुम्हार के हाथ की मिट्टी हूँ

अब ये मिट्टी देख ,खिलौना कैसे बनाती है।


ज़ेब गौरी का लिखा शेर जब मैं रोहित कुमार “मीत” और अनवारुल हसन की किताब “ख्वाबों का  कारवां” में पढ़ा,तो मुझे महसूस हुआ कि शेर मेयारी है,लेकिन जब आज आदरणीय गुरु श्री उमाशंकर शुक्ला जी का सानिध्य मिला तो मुझे एहसास हुआ कि ये शेर ” मेयारी” के साथ साथ हर दौर में” प्रासंगिक “है ।आदरणीय शुक्ला जी इस शेर की आत्मा यानी कुम्हार की तरह हैं,जो ना जाने कितने शागिर्दों को शिक्षा देकर उन्हें आला मुकाम पर  पहुँचा दिये।

शुक्ला सर ने अमर बाल विधा मंदिर में लंबे समय तक अपनी सेवाएं  दीं और हज़ारो बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने का काम किया।उनके बहुत से शिष्य आज सरकारी व गैर सरकारी महकमे में उच्च पदों पर आसीन होकर  क्षेत्र का मान बढ़ा रहे हैं।शुक्ला सर  का जोर नैतिक मूल्यों को स्थापित करने पर ज़्यादा होता था।उनका मानना था शिक्षा मनुष्य को शालीन बनाती है और व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में सहायक होती है।शिष्यों को नैतिकता, मूल्यों,एवं आदर्शों  का पाठ पढ़ाने वाले  गुरु का सादर “अभिवादन”।

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