“मसीह उल मुल्क “:हकीम अजमल खान ;ख़िराज ए अक़ीदत

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एक और अजीब दास्तान मसीह उल मुल्क की ज़िंदगी से जुड़ी है कि वो खिलाफत मोमेंट के अध्यक्ष,मुस्लिम लीग के अध्यक्ष,भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष तो थे ही ,हिन्दू महासभा के भी अध्यक्ष थे -आश्चर्यजनक किंतु सत्य

डॉ खुर्शीद अहमद अंसारी

इतिहास गवाह है कि उसे समय और काल चक्र कभी भुलाने की कोशिश करता है तो कभी चाटुकारिता से वशीभूत हो कर इतिहासकार सत्ता ,राजशाही की प्रशंसा में या शक्ति केंद्र को खुश रखने के लिए इतिहास लिखता है और बारहा यह भी अयाँ होता है कि किसी सियासी और समाजी बदलाव के ज़ेर ए असर तारीख़ को मस्ख़ करने की कोशिश हमेशा से जारी रही है पर वक़्त तारीख तो अपने वसी दामन में पनाह देता है।

11 फरवरी ,1868 को दिल्ली में हकीम अजमल ख़ान साहब की पैदाइश होती है। जीवन भर उनके संघर्ष , मानव सेवा , समाज सेवा और मुल्क की आज़ादी की हद तक दीवानगी और अपनी सियासी खिदमात के लिए हकीम अजमल ख़ान साहब को आप तारीख़ से मिटाने की कोशिश तो कर सकते हैं लेकिन यक़ीन जानिये कि ऐसा कर नहीं पाएंगे। इस महान स्वतंत्रा सेनानी , मक़बूल व मारूफ़ हकीम की खिदमात का ऐतराफ़ करते हुए बर्तानी हुक्काम ने उन्हें मसीहुल मुल्क के खिताब से नवाज़ा। उस वक़्त जब अँगरेज़ अपने साथ अपनी ज्ञान , शिक्षा व चिकित्सा को भी प्रसारित कर रहे थे और यहां की पारम्परिक चिकित्सा पद्वतियों पर घोर संकट था ,जिसके लिए हकीम अजमल खान साहब ने काफ़ी लम्बे संघर्ष के बाद अँग्रेज़ों को वैदिकी और हकीमी जैसे तरीक़ा ए इलाज को क़ुबूल करने की लड़ाई लड़ी और अंततः विजयी हुए।

वैदिकी और यूनानी की उन्नति और उसमे वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने साथ ही उन पद्धतिओं के शिक्षा और प्रसार के लिए उन्होंने दिल्ली करोल बाग़ स्थित , आयुर्वेद और यूनानी कॉलेज की स्थापना की जिसका शिलान्यास महात्मा गाँधी ने किया और साथ ही ए ओ ह्यूम ने उसका उद्घाटन किया। तत्कालीन विश्व की उथल पुथल कके बीच किसी ज़माने में वफ़ादार हाफ़िज़ शैदा उर्फ़ अजमल ख़ान अब बाग़ी हाकिम अजमल खान बन चुके थे और गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के एक अहम् किरदार ने अपना तन मन धन सब कुछ जंग ए आज़ादी में वक़्फ कर दिया। साथ ही उन्होंने यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा को शोध पर आधारित इलाज के तरीकों को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया. 1921 में वो सी आर दास के ख़िलाफ़ भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और देश के दुर्भाग्य देखिये कि आज न मिल्लत ,न देश यहां तक कि भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस भी उनकी सेवाओं को उनके संघर्षो को याद करती है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया जो आज एक केंद्रीय विश्व विद्यालय है उसके संस्थापकों में से एक हक़ीम अजमल ख़ान ने छः महीने से अधिक समय तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कर्मचारिओं और शिक्षकों की आजीविका जब बंद हो गयी थी तो अपने व्यक्तिगत धन से उनकी आर्थिक मदद की थी और उनकी सैलरी दी थी।लेकिन दुर्भाग्य है कि वहां भी उनकी ज़िन्दगी के बारे में बेहद कम और कभी कभी ही चर्चा हो पाती है।


उस महान क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ , दीन दुखियों का इलाज करने वाला हकीम , अज़ीम फ्रीडम फाइटर और शायर हाफ़िज़ शैदा आज 29 दिसम्बर को जहान ए फ़ानी को अलविदा कह गए।उनकी राष्ट्र सेवा, समर्पण को याद करते हुए भारत सरकार से निवेदन करते हैं कि उनको मरणोपरांत ही सही भारत रत्न दिया जाना चाहिए जो उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

(एक और अजीब दास्तान मसीह उल मुल्क की ज़िंदगी से जुड़ी है कि वो
खिलाफत मोमेंट के अध्यक्ष
मुस्लिम लीग के अध्यक्ष
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष तो थे ही
हिन्दू महासभा के भी अध्यक्ष थे -आश्चर्यजनक किंतु सत्य)

जय हिन्द

डॉ ख़ुर्शीद अहमद अंसारी
डीन स्टूडेंट वेलफेयर
जामिया हमदर्द , नई दिल्ली

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

सग़ीर ए खाकसार

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