समाजवादी विचारधारा के एक समर्पित योद्धा थे बृजभूषण तिवारी:-पुण्यतिथि पर विशेष!

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निज़ाम अहमद खां

बढ़नी, सिद्धार्थनगर,25 अप्रैल।इण्डो नेपाल पोस्ट

ज़िन्दगी भर मैं जिसे देख कर इतराता रहा।
मेरा सब रूप वो मिट्टी की धरोहर निकला।।
रूखी रोटी भी सदा बांट के जिसने खाई।
वो भिखारी तो शहंशाहों से बढ़ कर निकला।।


कवि गोपाल दास “नीरज” के इस शेर को पढ़ कर बरबस गुरु स्व0 बृज भूषण तिवारी जी की याद आ जाती है। डा0 राम मनोहर लोहिया की प्रेरणा से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले समाजवादी चिंतक “सीमांत लोहिया ” गुरु स्व0 बृज भूषण तिवारी जी का दिल बहुत बड़ा था,वे अपने कार्यकर्ताओं से बहुत प्यार किया करते थे।अकसर अपने लोगों से मिलने उनके घरों पर जाया करते थे।त्योहार के मौके पर अचानक गुरु जी एक दिन मेरे घर पर आए,मैं जितना आश्चर्यचकित था,उतना ही प्रसन्नचित,क्यों कि गुरु जी का मेरे घर अचानक आना हुआ था।मैं अभिभूत हुआ और गुरु जी का कृतज्ञ भी।


प्रायः गुरु जी अपने करीबियों,कार्यकर्ताओं और शिष्यों के यहाँ बिना बताए आते थे,ये उनकी सरलता,सहजता ,अपनापन और सौम्यता को दर्शाता था।दोपहर में अकसर अपने लोगों के बीच में बैठ कर” चना -चावल का भूजा “खाना और यह कहना कि “इसी बहाने हम अपने लोगों से देर तक बातें कर लेतें हैं,” उनके “अपनेपन” को दर्शाता है।

अपने कार्यकाल में उनके जरिये किये गए बहुत सारे विकास के कार्यों के साथ जनपद सिद्धार्थ नगर में उनके द्वारा बनवाये गए “लोहिया कला भवन” आज मील का पत्थर साबित हो रहा है।उनकी सादगी भरी जीवन शैली “मिज़ाज़ फकीरी और काम बादशाहों का” कहावत को चरितार्थ करता है।लोक सभा और राज्यसभा दोनों सदनों की गरिमा बढ़ा चुके,गुरु बृज भूषण तिवारी जी अब इस दुनियां में नही हैं,फिर भी गुरु जी “अजर और अमर” हैं।उनकी यादें सदियों सदियों तक यूं ही बनी रहेगी।उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए “विनम्र श्रद्धांजलि”।

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