………….कृष्ण का संदेश !

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इस धरती पर जो थोड़े लोग प्रेम का संसार रचना चाहते हैं उनके लिए मेरी प्रेम की वंशी ही मेरा संदेश है। संसार के कल्याण का कोई रास्ता निकलेगा तो इसी से निकलेगा।

ध्रुव गुप्त

मेरे भक्तों, मेरे जन्मोत्सव के बहाने बार-बार मत पुकारा करो मुझे। तुम्हारी भारत भूमि पर मेरी यात्रा द्वापर युग तक ही ठीक थी। तब धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश का प्रश्न खड़ा था। अब धर्म रह ही कहां गया है ? यहां शासक पक्ष हो या विपक्ष – दोनों ही के मूल में अधर्म है। दोनों ओर कंसों, शकुनियों, धृतराष्ट्रों, दुर्योधनों और दुःशासनों की भीड़ है। अधर्म ही अधर्म के विरुद्ध खड़ा है।

अधिसंख्य जन सत्य, न्याय, प्रेम, समता और भाईचारे का मार्ग त्याग चुके हैं। अब कभी महाभारत हुआ तो वह धर्मयुद्ध नहीं, अधर्मयुद्ध ही होगा। अधर्म ही अधर्म से लड़ेगा। अधर्म ही मरेगा, अधर्म ही मारेगा। अधर्म ही जीतेगा, अधर्म ही हारेगा। अब कोई भी महाभारत रचने की मुझे क्या आवश्यकता है ? ये कपटी लोग अपना महाभारत स्वयं रचेंगे और लड़-मरकर इस पवित्र भूमि को बोझ से मुक्त करेंगे।

इस धरती पर जो थोड़े लोग प्रेम का संसार रचना चाहते हैं उनके लिए मेरी प्रेम की वंशी ही मेरा संदेश है। संसार के कल्याण का कोई रास्ता निकलेगा तो इसी से निकलेगा। ईश्वर के किसी अवतार की प्रतीक्षा मत करो! ईश्वर तुम्हारा स्रष्टा है तो तुम सब ईश्वर के ही अंश या अवतार हो। मेरी तरह अपने भीतर के ईश्वरत्व को पहचानो। ईश्वर ने यह संसार रचा है। इस संसार में तुम शांति, सुख और प्रेम के असंख्य वृंदावन रचो ! जहां ऐसा वृंदावन होगा, वहां मैं होऊंगा। वहीं होगी मेरी बांसुरी की दिव्य तान भी।

इस पृथ्वी के सभी प्रेम करने वालों को मेरे जन्मोत्सव की ढेर शुभकामनाएं !

(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं ,फिलवक्त स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं)

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