रा चीफ के दौरे के बाद नेपाल

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यशोदा श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार


:::–नेपाल के तेजी से हो रहे चीनीकरण पर भारत की आंख अब खुली है। भारतीय खुफिया एजेंसी रा चीफ सामंत कुमार गोयल के बाद नवंबर के पहले सप्ताह में ही प्रस्तावित थलसेना अध्यक्ष एम एम नरवणे का नेपाल भ्रमण इसी दृष्टि से देखा जा रहा है। रा चीफ के नेपाल भ्रमण के कुछ रोज बाद ही पीएम ओली के खिलाफ उनके अपनों का एक बार फिर बगावती सुर यद्यपि संयोग हो सकता है लेकिन इसे रा चीफ के मार्फत भारत की कूटनीतिक रणनीति भी हो तो ताज्जूब नहीं।
बता दें कि पूर्व पीएम प्रचंड, माधव कुमार नेपाल, बामदेव गौतम,नारायण काजी श्रेष्ठ जैसे सत्ता रूढ़ दल के वरिष्ठ नेताओं ने पीएम ओली के खिलाफ फिर मोर्चा खोल दिया है। रा चीफ के काठमांडू दौरे का बड़ा संदेश चीन तक भी पहुंचा। चीन चकित और  चौकन्ना है। चीन इस खबर को लेकर खास तौर पर हैरान है कि रा प्रमुख और पीएम ओली के बीच न केवल देर रात अकेले में मुलाकात हुई,उत्तराखंड के जिस विवादित भूक्षेत्र को नक्शे में शामिल कर नया नक्शा जारी किया था,उसे रा चीफ के साथ जिस कक्ष में ओली की मुलाकात हुई थी उसमें टांगा ही नहीं गया,नेपाल का पुराना नक्शा टांगा गया। इसे भी लेकर ओली अपनों और विपक्ष के निशाने पर थे।
बता दें कि नेपाल तेजी से चीन के जाल में फंसता जा रहा है। भारत सीमा से नेपाली भूभाग पर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा से लेकर सड़क,जल विद्युत परियोजना, रेल लाइन,सिमेंट फैक्ट्रियां आदि के जरिए वह भारत को मात देने की पुरजोर कोशिश में है। हैरत है कि भारत किसी दूसरे देश के आंतरिक मामले में दखल न देने की अपनी नीति के कारण इस ओर से आंख मूदे हुए है।दोनों देशों के भौगोलिक परिवेश के जानकारों का कहना है कि नेपाल में बढ़ता चीनी प्रभाव भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।

 नेपाल और भारत के बीच ताजा विवाद के पीछे वेशक चीन हो सकता है लेकिन इस मामले में पाकिस्तान की भूमिका पर भी गौर करना होगा।19 अक्टूबर 2019 को नेपाली अखबारों में छपी नेपाल में पाकिस्तानी राजदूत मजहर जावेद के लेख काबिले गौर है जिसमें उन्होंने वास्तविकता के इतर तथ्य गढ़कर भारत की छवि बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की है।इस बाबत भारत की ओर से आ रही खबरों में चीन तो निशाने पर रहता है लेकिन इस खेल का दूसरा किंतु असरदार किरदार पीछे छूट जाता है। बहुचर्चित लिपुलेख और कालापानी मुद्दे पर भी पाकिस्तान की दिलचस्पी देखने को मिल रही है।

दोनों देशों के बीच तनाव तो है लेकिन हमें यह ध्यान रखना है कि भारत और नेपाल ऐसे  पड़ोसी राष्ट्र हैं जिनके बीच एक दूसरे का रोटी बेटी का रिश्ता है ही,ये सामाजिक, सांस्कृतिक और काफी हद तक राजनितिक दृष्टि से भी एक दूसरे के नजदीक है। इतना ही नहीं तराई के 20 जिलों में बसने वाली नेपाल की बड़ी आबादी का झुकाव भारत के पक्ष में रहता ही है, नेपाल के हिंदू राष्ट्र के हिमायती राजनितिक दलें भी भारत को अपना रोलमाडल मानती हैं।इस आधार पर यह मानना ही होगा कि चीन हो या पाकिस्तान,ये लाख चाहें फिर भी नेपाल भारत से कभी अलग नहीं हो सकता।

नेपाल के पीएम ओली भारत पर अपनी भूमि के कब्जे का आरोप लगाकर कितना ही राष्ट्र वादी बनने की कोशिश कर लें,नेपाल की बड़ी आवादी इससे इत्तेफाक नहीं रखती।

नेपाल से संबंधो को बनाए रखने के लिए इस पर भी गौर करना होगा कि नेपाल में भी राष्ट्र भक्त का मुद्दा गर्म है।वह भी भारत विरोध के एवज में।आज यदि कम्युनिस्ट नेता ओली सत्ता में हैं तो इसके पीछे उनकी राष्ट्र भक्ति की छवि ही है जो उन्हें भारत विरोध के जरिए हासिल हुई।ओली की यह छवि तब बनी जब उनकी सरकार के पिछले कार्य काल में भारत नेपाल के बीच के सारे बार्डर बंद थे जिससे भारत से नेपाल पहुंचने वाले जरूरी सामानों की किल्लत से नेपाली जनता तबाह थी।इस नाकाबंदी से भारत का कुछ भी लेना देना नहीं था।नेपाल के मधेशी दलों ने संविधान में अपने अधिकारों की मांग को लेकर करीब पांच माह भारत सीमा के सभी नाकों को बंदकर सबसे लंबे अवधि तक विरोध का रेकार्ड कायम किया था।ओली  इस नाकेबंदी का सारा तोहमत भारत पर मढ़कर स्वयं राष्ट्र भक्त साबित करने में कामयाब हो गए।

इस बीच  नेपाल ने लिंपियाधुरा, लिपुलेख तथा कालापानी को अपने नक्शे में दर्ज कर उसे वैधानिक मान्यता भी प्रदान कर दी। भारत ने नेपाल के इस कदम पर एतराज़ जताया लेकिन ओली सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे उसने दशकों पूर्व दोनों देशों के बीच हुए संधियों के आधार पर भारत के कब्जे वाली उक्त भूमि पर अपना दावा बरकरार रखा।

इतना ही नहीं नेपाल भारत सीमा से सटे अपनी हद में सेना की तैनाती कर रहा है।नेपाल के गृहमंत्रालय का तर्क है कि दोनों देशों के बीच के अधिकृत नाका तो सुरक्षित है लेकिन नदी नाले व झाड़ झंखाड़ वाले रास्ते से दोनों देशों की सुरक्षा का खतरा है।ऐसे रास्ते दोनों देशों कि संपूर्ण 1750 किमी पर हजारों की संख्या में है।इन असुरक्षित मार्गो से आवांछनीय तत्वों की कथित आवाजाही रोकने के लिए नेपाल नें प्रति तीन किमी पर एक सुरक्षा चौकी स्थापित कर वहां पैरा मिलिट्री तैनात करने की योजना बनाई है। नेपाल के गृहमंत्री ने कहा है कि शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और समृद्ध नेपाल के लिए सीमा प्रबंधन जरूरी है। नेपाल का यह निर्णय दोनों देशों के बीच की संधियों का उलंघन है। 

फिलहाल भारत और नेपाल के बीच तेजी से बिगड़ रहे रिश्तों पर भारत ने अब अपनी खामोशी तोड़ी है। रा चीफ के बाद थलसेनाध्यक्ष का प्रस्तावित
नेपाल दौरा  दशकों पूर्व दोनों देशों के बीच उत्पन्न किसी विवाद के समाधान के लिए गठित उच्चस्तरीय समन्वय समित के फिर से सक्रीय करने की पहल हो सकती है।
भारत नेपाल के बीच विवाद उत्पन्न होना नया नहीं है। ऐसे विवादों का हल करने के लिए हमेशा उच्च स्तरीय बैठकें होती रही है। यहां तक की ऐसे ही विवादित मुद्दों के हल के लिए 1956 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद को भी जाना पड़ा था।उसके बाद सर्वपल्ली राधाकृष्णन,वीवी गिरी,डा.जाकिर हुसेन,ज्ञानी जैल सिंह और विदेश मंत्री रहते हुए प्रणब मुखर्जी जैसे शख्सियत भी काठमांडू गए। वेशक भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने कई दफे नेपाल की यात्रा की लेकिन उनकी यात्रा ऐसे किसी मौके पर नहीं थी।

(लेखक नेपाल मामलों के जानकार हैं ,ये विचार लेखक के अपने हैं)

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