इतिहास के पन्नों में जो स्वर्ण अक्षरो में चमक रहे हैं। उन्होंने राष्ट्र को सर्वोपरि माना। उन्हीं रण बाँकुरों को सादर समर्पित है जुग्गी राम राही की यह रचना
अपने वतन के वास्ते, ये शीश कटेगा।
दुश्मन के सामने न झुका है, न झुकेगा।।
जंगल में रहा घास की, रोटी भी है खाया,
राणा का लहू राष्ट्र के, खातिर ही बहेगा।
हर लाल के लहू में है, संस्कार बह रहा,
हँसता हुआ बिस्मिल यहाँ, फाँसी पे चढेगा।
प्राणों की अपने आहुति, रण में जो दे दिया,
सबकी जुबाँ पे जिन्दा, वो हमीद रहेगा ।
जिसने नजर उठाया, तिरछी है वतन पे,
सौगंध मुझे राही, वह ही न रहेगा ।
(जुग्गी राम राही,शिक्षक एवं नेशनल एनाउंसर हैं)