सूफी निजामुद्दीन साहब ने पूरी जिन्दगी दिया अमन व शांति का संदेश

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■ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों स्कूल की किया स्थापना।
■ कोविड गाइडलाइन के तहत आज से शुरू होगा सालाना उर्स।

सैफ़ सिद्दीक़ी

संतकबीरनगर,05 दिसम्बर।इण्डो नेपाल पोस्ट

भारत के प्रसिद्ध सूफी बुजुर्ग एवं इस्लामिक विद्वान हजरत सूफी मुहम्मद निजामुद्दीन बरकाती का नौंवा उर्स-ए पाक सोमवार को अगया स्थित खानकाहे निजामिया पर आयोजित होगा।आयोजन कमेटी के लोगों ने उर्स की तैयारियां शुरु कर दिया है।सूफी साहब एक बड़े आलिम-ए-दीन और सूफी बुजुर्ग के रूप में प्रसिद्ध थे।देश के विभिन्न प्रांतों, पाकिस्तान, बांग्लादेश एवं खाड़ी देशों में उनके अनुयाई बड़ी संख्या में मौजूद हैं।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी उनका वार्षिक उर्स कोविड गाइडलाइन के अनुसार शुरू होगा उर्स में देश के विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंचते हैं।सोमवार सुबह में फर्ज की नमाज के बाद सूफी साहब की मजार पर कुरान खानी के साथ ही उर्स का कार्यक्रम शुरू होगा। दोपहर बाद जोहर की नमाज के बाद मजार पर चादर पोशी और गुल पोशी का सिलसिला शुरू होगा और देर शाम तक चलेगा।रात में ईशा की नमाज के बाद निजामी कांफ्रेंस का आयोजन होगा जिसमें देश के कई बड़े इस्लामिक विद्वान प्रतिभाग करेंगे।सात दिसम्बर की सुबह में मजार पर कुल शरीफ के आयोजन के बाद उर्स का कार्यक्रम सम्पन्न होगा।

सूफ़ी साहब का जन्म सेमरियावाँ ब्लॉक के अगया में 15 जनवरी 1928 में हुआ था।शिक्षा जगत को हजरत सूफी साहब ने एक नया आयाम दिया। सूफी साहब ने अपनी ज़िंदगी मे शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सैकड़ों मदरसों का शिलान्यास किया।अमनों शांति के प्रतीक सूफी साहब की किताबों को पढ़ कर लोग आज भी अमन व शांति का संदेश दे रहे हैं।

पूरी जिन्दगी अपने अमल व किरदार से सीधा रास्ता दिखाने का कार्य किया। सूफ़ी साहब ने पूरी जिन्दगी शिक्षा को बढावा देने के लिए सैकड़ों मदरसे की स्थापना किया।अपनी कलम व जुबान से समाज को एक अच्छा रास्ता दिखाते रहे।घर पर प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद 1947 में आगे की शिक्षा बसडीला में लिया।

उच्च शिक्षा के लिए 1948 में अल्जामीयतुल अशरफिया मुबारकपुर से लिया।मुबारकपुर में शिक्षा लेने के बाद 1952 में हजरत की दस्तार बंदी हुइ। जन्म से ही सीधे व सरल स्वभाव के होने के कारण इनका नाम सूफी पड़ गया।हजरत सूफी निजामुद्दीन शिक्षा को बढ़ावा देते हुए 14 मार्च 2013 को पैत्रिक गांव अगया में निधन हुआ था।

अंतिम संस्कार में देश-विदेश से आए थे हज़ारों लोग

सूफी साहब के निधन की सूचना पर उनके अंतिम संस्कार में देश व विदेश से लाखों की संख्या में उनके चाहने वाले पहुंचे थे।उनका सालाना उर्स अरबी महीने की एक जुमादल अव्वल को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है जहां हर साल लाखों की संख्या में अकीदत मंद पहुंचकर खराजे अकीदत पेश करते हैं।

सूफी साहब ने अपनी हयाते जिन्दगी में शिक्षा की खिदमत को अंजाम देते हुए समाज को सीधा रास्ता दिखाने के लिए एक दर्जन से अधिक किताबेंं लिखी।इनमें प्रमुख रुप से बरकाते रोजा, हुक़ूके वालिदैन, फजाइले मदीना, फलसफए कुर्बानी, बरकाते मिस्वाक, दाढ़ी की अहमियत, फजाइले तिलावते कुरान मजीद, इख्तियारते इमामुन नबियीन, खाने पीने का इस्लामी तरीका जो काबिले जिक्र है।

कई लेखकों ने इन के जिन्दगी पर किताबें लिखी हैं जो आज भी लोगों के उनके बाताए संदेशों पर चलने की सीख देती है। इन के जिन्दगी की प्रमुख किताबों में दो अजीम शख्सियत, खतीबुलबराहीन एक मुनफरद मिसाल शख्सियत, आईने मोहद्दिस बस्तवी, खतीबुल बराहीन अपने खुतबात के आईने में, खतीबुल बराहीन आईने अश्आर में, मोहद्दिस बस्तवी सुन्नते रसूल के आईने में, तोहफ-ए-निजामी आदि प्रमुख पुस्तक है।

सूफ़ी साहब ने बीस वर्ष तक दिया था नि:शुल्क शिक्षा

सूफी निजामुद्दीन साहब ने चार मदरसों में शिक्षण कार्य किया।सबसे पहले दारुल उलूम फैजुल इस्लाम मेहंदावल, दारुल उलूम शाह आलम अहमदाबाद गुजरात,दारुल उलूम फजले रहमानिया पचपेड़वा में शिक्षण कार्य किया। अन्तिम में दारुल उलूम तनवीरुल इस्लाम अमरडोभा में शैखुल हदीस के प्रवक्ता पद पर रहे। उन्होंने 20 वर्ष तक बिना वेतन के ही शिक्षण कार्य किया।

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