मौलाना मुहम्मद अली जौहर:स्वतंत्रता संग्राम के महानायक,जौहर डे पर विशेष

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10 दिसम्बर जौहर डे पर इण्डो नेपाल पोस्ट की विशेष प्रस्तुति

ई0काज़ी इमरान लतीफ

ई0क़ाज़ी इमरान लतीफ

महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, विशुद्ध पत्रकार, विद्वान शिक्षाविद, कुशल राजनीतिज्ञ, महान राष्ट्रवादी एवं प्रखर वक्ता मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब का जन्म 10 दिसम्बर 1878 को उत्तर प्रदेश के रामपुर जनपद में हुआ था। इनके पिता अब्दुल अली खान का बचपन मे ही निधन हो गया था।मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब का लालन पालन उनकी माँ आबिदी बेग़म ने किया, मौलाना ने राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रवादिता का पहला पाठ अपनी मां से ही सीखा।इनकी मां “बी अम्मा” के नाम से मशहूर हैं।

मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब ने उर्दू और फ़ारसी की इब्तेदायी तालीम घर पर ही हासिल की।
बरेली से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और स्नातक अलीगढ़ से किया।मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब आज़ादी के दीवाने मौलाना शौक़त अली साहब के छोटे भाई थे। दोनों भाई “अली बंधू”  के नाम से प्रसिद्ध हैं।अपने बड़े भाई की दिली ख्वाहिश पर जौहर साहब ICS (इंडियन सिविल सर्विसेज) की तैयारी के लिए इंग्लैंड चले गए लेकिन उन्हें वहां सफलता नही मिली।वापस आकर उन्होंने रामपुर रियासत में बतौर उच्च शिक्षा अधिकारी काम किया। इसके बाद इन्होंने बड़ौदा रियासत में भी काम किया। लेकिन इन कामों में मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब का कभी दिल नही रमा।

1910 में वह कलकत्ता चले गए और वहां अग्रेजी अखबार “कामरेड” निकालना प्रारम्भ किया। यह अखबार बहुत प्रसिद्ध हुआ। इस अखबार में उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष भारतीय समाज की समस्याओं को बखूबी उजागर किया था और अंग्रेजी हुक़ूमत के विरुद्ध देश के बुद्धजीवी वर्ग को जागृत करने का काम किया। जल्द ही इस अखबार का  प्रभाव दिखने लगा, फलस्वरूप ब्रिटिश हुक़ूमत ने इस अखबार को प्रतिबंधित कर दिया।1912 में जब अंग्रेज़ी हुक़ूमत ने दिल्ली को अपना केंद्र बनाया तभी मौलाना भी दिल्ली आ गए।यहां मौलाना ने ब्रिटिश हुक़ूमत के खिलाफ सक्रियता बढ़ा दी। इसी क्रम में उन्होंने उर्दू सप्ताहिक अखबार “हमदर्द” निकालना शुरू किया। इस अखबार के माध्यम से मौलाना ने उर्दू भाषी विशेषकर  मुस्लिम समाज को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लामबंद करने का सफल प्रयास किया।

अपनी पत्रकारिता के दम पर मौलाना ने अंग्रेज़ी हुक़ूमत को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। तिलमिलाई सरकार ने उन्हें 4 साल की सज़ा सुनाई। मौलाना ने कभी भी पत्रकारिता के सिद्धांतों से समझौता नही किया, उनका मानना था बिना प्रमाण के खबरे क़त्तई प्रकाशित नही की जानी चाहिए। उनका कहना था कि खबरों का इस्तेमाल कभी भी आर्थिक लाभ के लिये नही करना चाहिए।स्वतंत्रता संग्राम में मौलाना ने बड़ी अहम भूमिका निभाई। 1919 में मौलाना खिलाफत आंदोलन के मुख्य सूत्रधारों में से एक रहे और खिलाफत आंदोलन के प्लेटफार्म को आज़ादी की लड़ाई के लिए कारगर बनाने में मौलाना की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। खिलाफत आंदोलन में सक्रियता की वजह से मौलाना गांधी जी के करीब आ गए और असहयोग आंदोलन में सक्रिय हो गए।

मौलाना हमेशा मुस्लिम हिन्दू एकता के लिए संघर्षरत रहे। वह अपने अखबार और तक़रीर के माध्यम से मुसलमानो से गाय का गोश्त हमेशा के लिए छोड़  देने की अपील करते थे ताकि हिन्दू समाज को ठेस न पहुचे। साथ ही वह हिन्दू समाज से भी मुसलमानों के साथ मिलजुलकर रहने की विनती करते रहते थे।मौलाना का मानना था कि मुस्लिम समाज की तरक़्क़ी के  लिए लोगों का शिक्षित होना बेहद ज़रूरी  है। यही कारण है कि उन्होंने अलीगढ़ में नेशनल मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना किया जो बाद में जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के नाम से मशहूर हुई। बाद में इस विश्वविद्यालय को अलीगढ़ से दिल्ली लाया गया।मौलाना आजीवन देश की आज़ादी और सामाजिक एकता के लिए संघर्ष करते रहे। मौलाना की राष्ट्रवादी प्रवृत्ति और देशप्रेम का अंदाज़ा जीवन भर के संघर्षों के अतिरिक्त इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने वसीयत की थी कि “मरने के बाद मुझे गुलाम हिंदुस्तान में दफ़्न न किया जाए “।


लन्दन की गोल मेज़ कांफ्रेंस में ब्रिटिश प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं को संबोधित करते हुए कहा मौलाना ने कहा था कि”दुनिया के किसी देश के पास वह असलहा वह ताक़त नहीं है की वह 36 करोड़ लोगों को मार सके मगर हम 36  करोड़ भारतियों ने अपने देश की आज़ादी के लिए मर मिटने के फैसला कर लिया है —–इस कांफ्रेंस के बाद मैं एक गुलाम भारत में वापस नहीं जाऊँगा या तो ब्रिटिश हमें आज़ादी का परवाना दे या मेरे लिए किसी दूसरी जगह कब्र का इन्तिज़ाम करे “
शायद अल्लाह को उनकी यह अदा यह जिद पसदं आई लन्दन में ही उनका इन्तिकाल हो गया और पैगम्बरों की सरज़मीन (बैतूल मकदस ) फिलस्तीन में उनको सुपुर्द ख़ाक किया गया I देश की आज़ादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देने वाले  कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके स्वतंत्रता  संग्राम सेनानी,पत्रकार शायर  मौलाना मोहम्मद अली जौहर का आज यौमे पैदाइश अफ़सोस की हम अपने इन रोशन ज़मीर बुजुर्गों को भूल चुके हैं ।मौलाना ने कभी अपने वसूलों से समझौता नही कियाIअंग्रेज़ो के सामने झुके नहीं निरन्तर आज़ादी के लिए संघर्ष करते रहे। जेल में सज़ा के दौरान  मौलाना मुहम्मद अली जौहर की दो बेटियां काफी बीमार थीं,अंग्रेजों ने मौलाना के सामने शर्त रखी कि आप अगर माफी लें तो आप को रिहा कर दिया जाएगा।ये बात जब मौलाना की  वालिदा को मालूम हुआ तो उनकी वालिदा ने कहा कि ” अंग्रेजों से कभी मत मांगना अगर तुमने अंग्रेजों से माफी मांगी तो मेरी इन बूढ़ी हड्डियों में अभी भी इतनी ताकत है कि मै तुम्हारा गला घोंट सकूं।मौलाना ने माफी नही मांगी उनकी दोनो बेटियों की मौत हो गयी ।

मौलाना ने 4 जनवरी 1931 को लन्दन में अंतिम सांस ली और वसीयत के मुताबिक इन्हें बैतुल मुक़द्दस में सुपुर्दे खाक़ किया गया।आज़ादी के दीवाने, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, विशुद्ध पत्रकार, विद्वान शिक्षाविद, कुशल राजनीतिज्ञ, महान राष्ट्रवादी एवं प्रखर वक्ता मौलाना मोहम्मद अली जौहर साहब को हज़ारों सलाम।

“दौर ए हयात आएगा कातिल कज़ा के बाद”

है इब्तिदा हमारी तेरी इंतेहा के बाद
(मौलाना मोहम्मद अली जौहर)
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(लेखक ई0काज़ी इमरान लतीफ आम आदमी पार्टी,उत्तरप्रदेश के उपाध्यक्ष हैं)
मोबाइल: 9838808286

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