माँ… उंगली पकड़ के तू ने ,चलना हमें सिखाया..!”राही”

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माँ शब्द जितना सरल एवं सरस है उसकी व्याख्या उतनी ही व्यापक है। माँ की तुलना किसी से नहीं की जा सकती क्योंकि वह अतुलनीय है। इसी विषयक को स्पर्श करती हुई जुग्गी राम रही की चन्द पंक्तियाँ!

जुग्गी राम राही

ममतामयी माँ वन्दन, तेरा सदा करेंगे।
तेरे चरन कमल की, अर्चन सदा करेंगे।

नौ माह कोख में रख, तूने हमें है जाया।
मेरे लिए माँ तूने, क्या -क्या नहीं बचाया।
ईश्वर से पहले माँ हम, दर्शन तेरा करेंगे,
तेरे चरन कमल की, अर्चन सदा करेंगे।
ममतामयी माँ वन्दन…..

काजल का टीका तूने, माथे पे है लगाया।
उंगली पकड़ के तूने, चलना हमें सिखाया।
अवहेलना कभी माँ, तेरा नहीं करेंगे,
तेरे चरन कमल की, अर्चन सदा करेंगे।
ममतामयी माँ वन्दन….

मेरे लिए जुटाया है, तूने आना पायी।
सबसे बचा के रक्खा, माँ खूँट में मिठाई।
रौशन जहाँ में राही, तेरा नाम हम करेंगे,
तेरे चरन कमल की, अर्चन सदा करेंगे।
ममतामयी माँ वन्दन…..

जुग्गी राम राही (शिक्षक एवं नेशनल एनाउंसर) बढ़नी - सिद्धार्थनगर

सग़ीर ए खाकसार

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